सदियों से इस जगत में
पुनीता , पूजिता औ' तिरस्कृता
बनी और सब शिरोधार्य किया
कभी उन्हें दी सीख
औ' कभी मौत भी टारी हूँ ,
हाँ मैं नारी हूँ.
सदियाँ गुजरी ,
बहुरूप मिले
विदुषी भी बनी
औ बनी नगरवधू
धैर्य कभी न हारी हूँ,
हाँ मैं नारी हूँ.
वनकन्या सी रही कभी,
कभी बंद कर दिया मुझे
सांस चले बस इतना सा
जीने को खुला था मुख मेरा
जीवित थी फिर भी
सौ उन पर मैं भारी हूँ,
हाँ मैं नारी हूँ.
जीने की ललक मुझ में भी थी
जीवन मेरा सब जैसा था,
जुबान मेरे मुख में भी थी
पर बेजुबान बना दिया मुझे
बस उस वक्त की मारी हूँ,
हाँ मैं नारी हूँ.
आज चली हूँ मर्जी से
आधी दुनिया में तूफान मचा
कैसे नकेल डालें इसको
जुगत कुछ ऐसी खोज रहे
कहीं बगावत बनी मौत
औ कहीं जीती मैं पारी हूँ,
हाँ मैं नारी हूँ.
अब छोडो मुझे
जीने भी दो
तुम सा जीवन मेरा भी है
अपने अपने घर में झांको
मैं ही दुनियाँ सारी हूँ,
हाँ मैं नारी हूँ.
सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता
Wednesday, June 30, 2010
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14 comments:
बढ़िया रचना!
सांस चले बस इतना सा
जीने को खुला था मुख मेरा
जीवित थी फिर भी
सौ उन पर मैं भारी हूँ,
हाँ मैं नारी हूँ.
यही जज्बा तो नारी को यहां तक लाया है और आगे भी ले जा रहा है ।
sundar rachna badhai
सटीक....अच्छी रचना
नारी विपरीत परिस्थियों में रहते हुए भी सदैव आगे बढ़ी है,यह सत्य है, लेकिन उसे कब न्याय मिलेगा ? इसका इंतज़ार है. अच्छी रचना के लिए बधाई.
मीना अग्रवाल
नारी जीवन का सारा सार लिख दिया।
रेखा जी आपसे नारी पर इससे बेहतर अभिव्यक्ति की अपेक्षा है। शुभकामनाएं।
मैं ही दुनियाँ सारी हूँ,
हाँ मैं नारी हूँ.
नारी की बहुत सटीक व्याख्या की है....बढ़िया अभिव्यक्ति
नारी का मन कोमल होते हुवे भी शक्तिवान है ... नारी के विभिन्न आयामों को रचना में उतारती हुवी पंक्तियाँ बहुत लाजवाब हैं. ...
सुन्दर रचना. आभार.
ha mai nari hoo
bahut kuchh kah jati hai yhi pnkti
बहुत सुन्दर रचना ! ऐसी नारी पर मुझे अभिमान है !
बढ़िया रचना!
very expressive and as always full of impact
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