भारतीये नारी पथ भटक गयी हैं
देवी हम उसको मानते थे
इंसान वो बनगई हैं
पहले हमारी बेटी बनकर वो
नाम पाती थी
पहले हमारी पत्नी बनकर वो
नाम पाती थी
पहले हमारी माँ बन कर वो
नाम पाती थी
अब वो अपना नाम खुद बनाती हैं
हमारे नाम के बिना भी
जीना चाहती हैं
अब इसको भटकाव ना कहे तो
क्या कहे ??
वो समानता की बात करती हैं
वो बदलाव की बात करती हैं
वो निज अस्तित्व की बात करती हैं
ये सब भटकाव नहीं तो और क्या हैं
भारतीये नारी पथ भटक गयी हैं
देवी हम उसको मानते थे
इंसान वो बनगई हैं
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सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता
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8 comments:
गज़ब का कटाक्ष्।
बहुत सही ,
इसी पथ को भटकने में उसने सदियों लगा दीं .
इस जीवन का अर्थ समझने में जिंदगियां गवां दीं .
आज आँखें खुली है तो सबने उनको गलत हवा दी है.
चर्चा का विषय बना कर उसकी आजादी को सजा दी है.
"भारतीये नारी पथ भटक गयी हैं
देवी हम उसको मानते थे
इंसान वो बनगई हैं"
gehre bhaav...
kunwar ji,
सत्य वचन।
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आखिर क्यूँ हैं डा0 मिश्र मेरे ब्लॉग गुरू?
बड़े-बड़े टापते रहे, नन्ही लेखिका ने बाजी मारी।
भटकाव के इस पथ पर पहुँच कर वह वस्तु से इंसान तो बनी कम से कम ! यह भटकाव भी वन्दनीय है ! बहुत खूब !
Blkul sahi kaha hai aapne.
कविता तो बहुत अच्छी है पर इसे एक हल्की फुल्की हंसी कहें, एक कटाक्ष कहें या समाज पर एक सीधा प्रहार????? इतने सारे सवाल!!!!!!!!
great !
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