सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Sunday, February 21, 2010

स्त्री का सच


स्त्री सुहाती हैं
कब
जब
नयनो को
झुका कर
ओठ को दबा कर
इठलाती हैं
रति बन जाती हैं
या
आँखों मे आंसूं
झुकी हुई गर्दन
सहनशीलता कि प्रतिमा
बन जीती जाती हैं

जिन्दगी शांति से चलती रहे
चाहे स्त्री उसमे कितनी भी
तपती रहे

सच बोलने से
हर स्त्री को
मना किया जाता हैं
और रहेगा

क्युकी
स्त्री का सच
अपच



कल अपनी एक महिला मित्र से बात हुई जो जिन्दगी से परेशान हैं जबकि उसके पास सब कुछ हैं , पति भी , बच्चे भी । दुनिया कि नज़र मे मृदुभाषी हैं सर्व गुणी हैं , शांत हैं , धीर गंभीर हैं और खुश हैं क्युकी दुनिया वो देख रही हैं जो उसका बाहरी आवरण हैं । जब अविवाहित थी तब सौतेली माँ के आतंक से त्रस्त थी , सबने कहा शादी कर लो एक घर तुम्हारा अपना होगा । शादी हुई , बेटिया हुई लेकिन सुख और शांति कि तलाश आज भी बदस्तूर जारी हैं और ये सच वो किसी से नहीं कह सकती क्युकी स्त्री का सच अपच
© 2008-10सर्वाधिकार सुरक्षित!

10 comments:

KAVITA said...

जिन्दगी शांति से चलती रहे
चाहे स्त्री उसमे कितनी भी
तपती रहे
सच बोलने से
हर स्त्री को
माना किया जाता हैं
और रहेगा

क्युकी
स्त्री का सच
अपच
Naari man peedha ka sundar chitran..
Bahit badhai

वन्दना अवस्थी दुबे said...

क्युकी
स्त्री का सच
अपच
बहुत सच्ची बात.सुन्दर और सच्ची कविता.

संगीता पुरी said...

स्‍त्री का सच तो सचमुच यही है .. बहुत सुंदर अभिव्‍यक्ति !!

mukti said...

ना जाने कितनी ही औरतें इसी तरह खुद को दुनिया के सामने सुखी दिखाकर मन ही मन घुटती रहती हैं...क्योंकि उनका सच कोई सुनना ही नहीं चाहता.......सुन्दर रचना.

ghughutibasuti said...

जब स्त्री को संसार में पुरुष के लिए बनाया हुआ माना जाएगा, चाहे भगवान का उपहार ही मानें तो और क्या आशा की जा सकती है?
घुघूती बासूती

रेखा श्रीवास्तव said...

हाँ यही कहानी है, हर ऊपर से खुश दिखने वाली औरत अकेले में कितने आंसू पीती इसे कोई नहीं देख सकता है.
उसके स्त्री होने का अहसास उसे चुप रहने का संकेत करता रहता है. पता नहीं कब ख़त्म होगी ये त्रासदी. आम औरत यही है, इसमें वे भी शामिल है जो बहुत ऊँचे पद पर और प्रभावशाली दिखलाई देती हैं, लेकिन घर कि चहारदीवारी में वे सिर्फ एक औरत होती हैं. पति और घर वालों के आदेश को पालन करने वाली क्योंकि वह एक माँ भी होती है और बच्चों के लिए करती है ये समझौता. .

जिन्दगी शांति से चलती रहे
चाहे स्त्री उसमे कितनी भी
तपती रहे
सच बोलने से
हर स्त्री को
माना किया जाता हैं
और रहेगा

रंजू भाटिया said...

सच बोलने से
हर स्त्री को
मना किया जाता हैं
और रहेगा

सही कहा ..ज़िन्दगी यूँ ही चलती रहेगी जब तक सहन किया जाता रहेगा शुक्रिया

Himanshu Pandey said...

"जिन्दगी शांति से चलती रहे
चाहे स्त्री उसमे कितनी भी
तपती रहे"
जरूर ही इस शान्ति के लिये बहुत कीमत अदा की है स्त्री ने !
आभार ।

संजय भास्‍कर said...

स्‍त्री का सच तो सचमुच यही है .. बहुत सुंदर अभिव्‍यक्ति !!

neelima garg said...

very true...