औरत -एक माँ ,
संस्कारों की धरती ,
पावन गंगा................
लोग इसे भूल जाते हैं !
एक माँ , काली बन जाती है
जब उसके बच्चे पर कुदृष्टि पड़ती है !
एक औरत ,बन जाती है दुर्गा ,
करती है महिषासुर का वध
जब संस्कारों की धरती पर
पाप के बीज पड़ते हैं !
पावन गंगा बन जाती है विभीषिका
जब उसकी पावनता के उपभोग की अति होती है !
सूखी नज़र आती गंगा काल का शंखनाद बनती है
दिशा बदल - सर्पिणी बन जाती है !
लड़की के जन्म को नकारकर वंश की परम्परा में ख़ुद आग भरते हो ,
जो पुत्र जन्म लेता है लड़की की मौत के बाद ,
वह पुत्र -विनाश का करताल होता है !
जागो,संस्कारों की धरती को बाँझ मत बनाओ...........
गंगा में संस्कारों को मत प्रवाहित
करो विश्वास की देहरी कोअंधकारमय मत करो।
लक्ष्मी को आँगन से निष्कासित मत करो !
नारी का सम्मान करो,
उसकी ममता को मान दो,
अन्धकार से प्रकाश की ओर प्रस्थान करो ,
आँगन में -बसंत को आने दो !
सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता
Saturday, July 25, 2009
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20 comments:
अन्धकार से प्रकाश की ओर प्रस्थान करो ,
आँगन में -बसंत को आने दो !
एक् माँ के अंतर्मन की आवाज़ ... बधाई स्वीकारे ...ILu..!
लाजवाब रचना...नारी का सम्मान होना ही चाहिए...
नीरज
माँ का सुंदर वर्णन..
बढ़िया रचना..
बधाई..
bahut sashakt rachna...basant ko aane do...
naari ko swayam ka samaan karna hoga...naari purushon ki soch ko bhi badal sakti hai....
aapki rachna dwaara jo aahwaan kiya gaya hai jagrook karta hai ..bahut bahut badhai
अत्यन्त सुन्दर रचना
---
चाँद, बादल और शाम
kahane ko shabda nahi hai ........par itana kaha sakata hu ki nari tara mahima aparamapar
nari hi nari ko agar kast de to kya kare./..isliye nari ko nari ka samna karna chahiye
achi rachna
आने दो भई आने दो।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
नारी का सम्मान करो,
उसकी ममता को मान दो,
अन्धकार से प्रकाश की ओर प्रस्थान करो ,
आँगन में -बसंत को आने दो !
bahut hi sachhi aur achhi baat keh di,sunder rachana
नारी की अस्मिता की बहुत प्रखर अभिव्यक्ति है आपकी यह रचना ! रश्मि जी ,जिस घर में बेटियाँ न हों और नारी का सम्मान न हो वह घर मुझे तो घर ही नहीं लगता , माँ तो उसका परमपावन रूप है ,उसकी ममता ही आदि जगत का मूल है ! आपकी यह रचना आदरांजलि है नारी को !
rashmi di, apne to mere munh ki bat kah di..........ek adbhut aviwyakti hai.........
बहुत बढिया !!
रश्मि,
नारी की गरिमा को स्थापित करने का प्रयास श्रेयस्कर है. सभी प्रतिमान तुम्हारी रचना के मूल भाव को ब्यक्त करने में समर्थ हैं.
ईश्वर तुम्हारे प्रयास को सफल करे.
लक्ष्मी को आँगन से निष्कासित मत करो !
नारी का सम्मान करो,
उसकी ममता को मान दो,
अन्धकार से प्रकाश की ओर प्रस्थान करो ,
आँगन में -बसंत को आने दो !
Samyanukul Sundar aur sashaqt rachna.
बिलकुल ...नारी का सम्मान करो ...नारियों से भी कहो !!
बहुत सुन्दर !
nari ke samman mein likhi gayi rachna lajawaab hai.
-नारी के सम्मान के लिए उद्वेलित करती एक खूबसूरत रचना है आपकी ....
"जो पुत्र जन्म लेता है लड़की की मौत के बाद ,
वह पुत्र -विनाश का करताल होता है !"
-पर इस पंक्ति ने मुझे कुछ असहज कर दिया ... उस मासूम "पुत्र" का भला क्या दोष ?अमानुष तो वयस्क मानवजाति में ही हैं .....
sabko aabhaar ...
dr giri,
माता-पिता के कृत्य की सज़ा बनता है वह पुत्र......
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