राखी सावंत ने रचा स्वयम्बर
बनने चली वो सीता
उम्मीद थी उसको
मिलेगे राम
पर शायद ये भूल गयी
राम मिलेगे
तो एक कहीं धोबी भी होगा
और फिर एक वनवास भी होगा
क्यूँ उन प्रथाओं को बारबार
दोहराते हैं जिनको
मिटाने मे लोगो ने युग लगा दिये
स्वयम्बर क्यूँ हो फिर
अग्निपरीक्षा क्यूँ हो फिर
और वनवास भी क्यूँ हो फिर
मत दोहराओ इतिहास
मत बनाओ नारी को फिर
रुढिवादी सोच का दास
सीता से राखी तक सफर तो ठीक था
कहीं कुछ आगे तो बढ़ा था
पर राखी से सीता तक का सफर
एक तरीका होगा
फिर नारी के अस्तित्व को मिटने का
स्वयम्बर से वनवास तक
सीता ने बहुत सहा था
क्या राखी तुम भी सहना चाहोगी
नहीं तो फिर क्यूँ रचा
ये स्वयम्बर
क्यूँ पुरानी परिपाटी
फिर दोहरायी
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सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता
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7 comments:
iska jawab shayad khud rakhi bhi nahi de paaye,bas kuch din ka tamjham hai.
achcha prashn uthaya hai.
आपने सुन्दर कविता का आगाज किया।
वैसे इस पर एक विचार आज मुम्बई टाईगर पर भी है समय मिली तो समीक्षा करे
आभार
मुम्बई टाईगर
हे प्रभू यह तेरापन्थ
मुंबई टाइगर
मित्र आपके ब्लॉग पर मे पहले ही कमेन्ट दे आयी
आप यहाँ आये थैंक्स
राखी और सीता में नारी होने के अलावा कोई बात कॉमन नहीं है ...जो भी धनुष तोड़ लेता सीता को उसके साथ जाना ही होता...यहाँ राखी के पास अवसर और संभावनाएं ज्यादा है ..!!
प्रभावी ढंग से उठायी है आपने यह बात ।
वाणी जी की बात से सहमत हूँ ।
वैसे देखा नहीं है यह स्वयंवर आज तक ।
बहुत ही गूढ़ तथ्य
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