चंचल मन की चाह अधिक है
कोमल पंख उड़ान कठिन है
सीमा छूनी है दूर गगन की
उड़ती जाऊँ मदमस्त पवन सी
साँसों की डोरी से पंख कटे
पीड़ा से मेरा ह्रदय फटे
दूर गगन का क्षितिज न पाऊँ
आशा का कोई द्वार ना पाऊँ !
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की और लिखा अपने मन मे बसी स्वतंत्रता को "
सभी से विनम्र निवेदन हैं
मोबाइल और सेल फ़ोन का उपयोग कम से कम करे ताकी वातावरण मे प्रदुषण कम हो । मोबाइल से निकली विद्युत चुम्बकीय तरंगें मुंह,त्वचा तथा शरीर के अन्य स्थानों पर कैंसर को जन्म दे सकती हैं। जहाँ तक सम्भव हो रात को मोबाइल बंद रखे । अगर घर मे चार मोबाइल हैं तो आप किसी एक को चालू रख का भी काम चला सकते हैं । लैंड लाइन का उपयोग करना फिर आरंभ करे । अगर आप के घर मे गर्भवती महिला हैं तो मोबाइल उनसे बहुत दूर रखे । १३ साल तक कि आयु के बच्चो को मोबाइल का उपयोग करने से रोके । अपने घर के आस पास मोबाइल टावर ना लगने दे । आपकी और आपके परिवार कि सेहत के अलावा पर्यावरण कि जिम्मेदारी भी आप की ही हैं ।
7 comments:
बेहतर व विचारवान कविता। पहले की भांति एक बार फिर संदेशपूर्ण पोस्ट।
सुन्दर कविता । आकांक्षा और प्राप्ति की आँख मिचौनी तो चलती ही रहती है ।
good poem
अच्छी कविता लिखी है आपने...
आपकी कविता यथार्थपरक है, पर यह निराशा को व्यक्त करती है।
मैं तो सिर्फ इतना ही कहूंगा कि आशा ही जीवन है।
-जाकिर अली रजनीश
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SBAI / TSALIIM
बहुत ही सुंदर कविता
lovely poem.....
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