चंचल मन की चाह अधिक है
कोमल पंख उड़ान कठिन है
सीमा छूनी है दूर गगन की
उड़ती जाऊँ मदमस्त पवन सी
साँसों की डोरी से पंख कटे
पीड़ा से मेरा ह्रदय फटे
दूर गगन का क्षितिज न पाऊँ
आशा का कोई द्वार ना पाऊँ !
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की और लिखा अपने मन मे बसी स्वतंत्रता को "
7 comments:
बेहतर व विचारवान कविता। पहले की भांति एक बार फिर संदेशपूर्ण पोस्ट।
सुन्दर कविता । आकांक्षा और प्राप्ति की आँख मिचौनी तो चलती ही रहती है ।
good poem
अच्छी कविता लिखी है आपने...
आपकी कविता यथार्थपरक है, पर यह निराशा को व्यक्त करती है।
मैं तो सिर्फ इतना ही कहूंगा कि आशा ही जीवन है।
-जाकिर अली रजनीश
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SBAI / TSALIIM
बहुत ही सुंदर कविता
lovely poem.....
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