सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Sunday, May 10, 2009

उड़ान


चंचल मन की चाह अधिक है

कोमल पंख उड़ान कठिन है

सीमा छूनी है दूर गगन की

उड़ती जाऊँ मदमस्त पवन सी

साँसों की डोरी से पंख कटे

पीड़ा से मेरा ह्रदय फटे

दूर गगन का क्षितिज न पाऊँ

आशा का कोई द्वार ना पाऊँ !

© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

7 comments:

Akhileshwar Pandey said...

बेहतर व विचारवान कविता। पहले की भांति एक बार फ‍िर संदेशपूर्ण पोस्‍ट।

Himanshu Pandey said...

सुन्दर कविता । आकांक्षा और प्राप्ति की आँख मिचौनी तो चलती ही रहती है ।

Rachna Singh said...

good poem

लोकेन्द्र विक्रम सिंह said...

अच्छी कविता लिखी है आपने...

admin said...

आपकी कविता यथार्थपरक है, पर यह निराशा को व्‍यक्‍त करती है।
मैं तो सिर्फ इतना ही कहूंगा कि आशा ही जीवन है।

-जाकिर अली रजनीश
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SBAI / TSALIIM

मोहन वशिष्‍ठ said...

बहुत ही सुंदर कविता

neelima garg said...

lovely poem.....