चलो
नए वर्ष के
इस प्रथम दिवस को
अपना संकल्प-दिवस
बना लें।
एक मशाल जलाकर
क्रांति की
मिटा डालें इबारत
इस भ्रान्ति की
कि नारी सिर्फ
अबला और आश्रित है,
सिर्फ पुरूष के पीछे - पीछे
चल कर जीवित है.
नारी सृष्टि का प्रतीक है
सृजकों का स्वागत
विध्वंसकों के अस्तित्व पर
अब प्रहार पर प्रहार कर
उन दुर्योधनों और दुशासनों
के अस्तित्व को मिटाना है।
उन्हें जीने का हक़ नहीं ।
अपने हाथ से
मस्तक पर
तिलक लगाने से
कोई पूज्य नहीं होता,
अहम् ब्रह्मास्मि
कहने भर से
कोई सृष्टा नहीं होता।
अब ठानना है,
महिषासुरों के लिए
दुर्गा बन कर
उनके लिए काल बनना है,
जो ममतामयी,
त्याग्शील औ' समर्पिवा
स्वरूप से
अपनी मर्जी से
खिलवाड़ करे ,
उनके अधिकारों को
अपनी मर्जी से
दें या फिर हनन करें
ऐसे लोगों से
लड़ने का संकल्प
करें और करते रहें.
साल- दर -साल के संकल्प
कुछ तो हमने पाया है
एक नए संकल्प से
सोच पुरातन पंथों की
बदलने के लिए
नया बीड़ा तो अब उठाया है.
हम न भी रहे
यह मशाल जलती ही रहेगी,
हम न सही
हम जैसे ही
और जन्म लेंगे
जो इसको जलाए रखेगें
जब तक कि
इस जहाँ में
अपने अर्धार्गिनी स्वरूप
को सार्थक सिद्ध करने
में सफल नहीं होती है।
सर्वस्व वह नहीं
बनना चाहती है
फिर भी
उसके बिना भी सृष्टि
अधूरी है
इस बात को
और अपने अस्तित्व के
महत्व को
इबारत में लिखकर
पुरूष ही नहीं
संपूर्ण मानवजाति
के लिए
स्वीकार्य
बना कर
समानता के सूत्र को
सार्थक करेगी।
सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता
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3 comments:
nayae sal par ek bahut hee saarthak pehal haen yae kavita
सत्य है-"नारी सृष्टि का प्रतीक है"
इस कविता के लिये धन्यवाद.
आपको हार्दिक सुभाकामंनाये नव वर्षा की
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