सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Thursday, October 2, 2008

लाईट लो बिटिया , पत्नी बनकर जीवन लाईट होता हैं

आज एक ब्लॉग पर एक कविता पढी और फिर ये लिखा । पत्नी की भावनाओं को हमेशा लाईट ही लिया जाता हैं । ये कविता केवल एक कोशिश हैं पत्नी को लाईट ना समझ कर सीरियस समझने की । और बात अगर मनवानी पड़े तो समझिये की बात मे कुछ ग़लत जरुर हैं क्युकी पत्नी के पास भी एक दिमाग होता हैं सही और ग़लत समझने का । पत्नी आप की दासी नहीं होती की हर बात माने

तुम सदियों से लाईट लेते रहे
पत्नी पर व्यंग करते रहे और
सुधिजन संग तुम्हारे मंद मंद हँसते रहे
घर मे हमको लाकर
व्यवस्था के नाम पर
वो सब हम से करवाया
बिना हम से पूछे की
क्या हमने करना भी चाहा
हमारी पढाई गयी चूल्हे मे
तुम्हारी पढ़ाई से तरक्की हुई
हमारे माता पिता का सम्मान
उनके दिये हुए सामान से
तुम्हारे माता पिता का सम्मान
तुम्हे पैदा करने से
हम चाकर तुम मालिक
घर तुम्हारा बच्चे तुम्हारे वंश तुम्हारा
तुम हो तो हम श्रृगार करे
ना हो तो सफ़ेद वस्त्र पहने
हम पर कब तक व्यंग
और फब्तियां कसोगे
उस दिन समझोगे की
पिता की पीडा क्या होती हैं
जब अपनी बेटी ब्याहोगे
हम तब भी उसको यही समझायेगे
जो हमारी माँ ने हमको समझाया
बिटिया निभा लो जैसे हमने निभाया
समझोते का नाम जिन्दगी हैं
और जिन्दगी जीने का अधिकार
पति का हैं
पत्नी को तो जीवन
काटना होता हैं
लाईट लो बिटिया
पत्नी बनकर जीवन लाईट होता हैं
क्योकि भार तुम्हारा , तुम्हारा पति कहता हैं
की वह ढोता हैं
और
समय असमय व्यवस्था के नाम पर
पत्नी को कर्तव्य बोध कराता हैं
फिर
ख़ुद लाईट हो जाता हैं

10 comments:

डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी said...

पत्नी को लाइट लेना किसी पति के लिये सम्भव नहीं है. पत्नी ही पति को लाइट लेती है, लाइट ही नहीं टाइट भी करती है. जिसने वास्तविक रूप से पत्नी के कर्तव्यों व उत्तरदायित्वों को निभाया है वह महिला बता सकती है कि पति कितना बेचारा व बेबश होता है!

Satish Saxena said...

वाकई में राष्ट्रप्रेमी जी ने ठीक कहा है , पत्नी को लाइट लेना शायद ही किसी पुरूष के बस की बात हो ;-) और न ही पत्निया ऐसी हैं जो अपने को लाइट लेना वर्दाश्त करें ! आज की पत्नियों के बारे में मेरी यह लायनें....

"ये शकल कबूतर सी लेकर
पति परमेश्वर बन जाते हैं !
जब बात खर्च की आए तो
मुंह पर बारह बज जाते हैं !
हम बुलबुल मस्त बहारों की, हम बात तुम्हारी क्यों मानें ?

पत्नी सावित्री सी चहिये ?
पतिपरमेश्वर का ध्यान रखे
गंगा स्नान के मौके पर
जी करता धक्का देने को !
हम आग लगा दें दुनिया में, हम बात तुम्हारी क्यों माने ?

हम लवली हैं ,तुम भूतनाथ
हम प्रेतविनाशक तुम कायर
हम उड़नतश्तरी पर घूमें,
जब तुम दफ्तर भग जाते हो
हम धूल उड़ा दें दुनिया की हम बात तुम्हारी क्यों मानें ?"

Anonymous said...

unhoney yae kavita aap ki kavita kae jwaab mae likhi haen satish bhaaiyaa , jaraa diya hua link click karao aur tum phir vahii doraahaa rahey ho kament mae kyaa faaydaa

Satish Saxena said...

अनाम के प्यार का शुक्रिया !
ईद के नशे में ये याद नही आया !

bhootnath said...

सिस्टम ही ऐसा बना दिया जाता है कि जो चल रहा है वही सही लगने लगता है !नारी के विचार, उसकी सोच, उसकी इच्छा, उसकी जिजीविषा सब-की-सब "चूल्हे" में "बड" (घुस) जाती है ....मगर इस कुचक्र को तोड़ भी तो नारी ही सकती है !!

Satish Saxena said...

बहद अच्छी लगी आपकी उपरोक्त रचना, बस कड़वाहट थोड़ी अधिक है, मगर कई सन्दर्भों में यथार्थ लिखा है !

"तुम हो तो हम श्रृगार करे
ना हो तो सफ़ेद वस्त्र पहने"

दर्दनाक है, यह हमारे धर्म की घटिया रीतियों में से एक है जिसको टूटना ही चाहिए !

वर्षा said...

सबकी न सही पर बहुतेरी नारियों की यही व्यथा है। उसकी पढ़ाई-लिखाई,योग्यता-दक्षता सब चूल्हे में चले जाते हैं। हां पर इसे तोड़ने की ज़िम्मेदारी भी नारी ने ही उठानी होगी।

manvinder bhimber said...

bahut si naariyon ki estithi essi hi hai......we padane ke baad bhi chule mai hi fansi rahti hai....mai kai essi naarion ko jaanti hu jo MBBS ke baad bhi is estithi ko jhelne ko majboor hai.....lekin is estithi se naari swayam hi niklegi....
apni ghutan se ajaadhi prapt kregi

डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी said...

क्या चूल्हा इतना निरर्थक व घटिया चीज है कि पढी-लिखी नारियों के लिये उस पर बैठना उचित नहीं? क्या चूल्हे पर बैठना नारी के लिये वाकई अपमान है? इस का जबाब भी एक सुसंस्कृत व समझदार नारियां ही दे सकती हैं. क्या सभी के पढ जाने पर दुनियां से चूल्हे विदा हो जायेंगे? क्या शिक्षा चूल्हे को भुला देने में समर्थ हो पायेगी?

Anonymous said...

"Womanhood is not restricted to the kitchen", he opined and felt that "Only when the woman is liberated from the slavery of the kitchen, that her true spirit may be discovered". It does not mean that women should not cook, but only that household responsibilities be shared among men, women and children. He wanted women to outgrow the traditional responsibilities and participate in the affairs of nation.

ये बात राष्ट्रप्रेमी जी मेने नहीं "बापू " ने कही हैं . कोई भी काम हीन नहीं हैं पर कोई भी काम किसी एक लिंग , एक समुदाय या एक जाति के लिये नहीं बना हैं . शिक्षा आप को हर काम मे प्रवीण बनने मे सहायक होती हैं . मुझे तो कुकिंग से बहुत प्यार हैं आप को भी होगा . कुछ विधियाँ "दाल रोटी चावल " ब्लॉग पर लिखे . चूल्हा जलाए आप भी क्युकी शिक्षा यही सिखाती हैं हर काम करो . सूचित करे ब्लॉग का इन्विते कब भेजू सादर