सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Wednesday, March 28, 2012

क्या कोई नाम भी दिया जा सकता हैं इस कविता को ???

दस्तक ब्लॉग पर एक कविता देखी 

कविता का शीर्षक नहीं हैं शायद ऐसी कविताओं का शीर्षक होता ही ना हो , कविता ईशा की हैं
क्या क्या नहीं कह रही हैं . मुझे बहुत कुछ सुनाई दिया आप को भी दिया हो तो कमेन्ट मे बताये . ईशा भी जानना चाहती होगी .
क्या कोई नाम भी दिया जा सकता हैं इस कविता को ???



नारी - नाम है सम्मान का, या
         समाज ने कोई  ढोंग रचा है.


बेटी - नाम है दुलार का, या
         समाज के लिए सजा है.


पत्नी - किसी पुरुष की सगी है, या
           यह रिश्ता भी एक ठगी है.


माँ -  ममता की परिभाषा है, या
        होना इसका भी एक निराशा है.


नारी - नाम है स्वाभिमान का, या
          इसका हर रिश्ता है अपमान का.
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22 comments:

मनोज कुमार said...

नारी - नाम है स्वाभिमान का

प्रतुल वशिष्ठ said...

नारी - नाम है सम्मान का, या
समाज ने कोई ढोंग रचा है.

@ ना, अरी ! ऎसी बात नहीं

नारी - हिस्सा है स्वयं भी समाज का

रचने-रचाने की वृत्ति नार्योचित है.

उसे ढोंग नाम देना सरासर अनुचित है.

प्रतुल वशिष्ठ said...

बेटी - नाम है दुलार का, या
समाज के लिए सजा है.
@ बे..तुकी, बात है ये. जिसके पास नहीं उससे पूछो.

बेटी - से तो समाज सजा है.

ये तो दुलार की चिर नूतन ध्वजा है.

प्रतुल वशिष्ठ said...

पत्नी - किसी पुरुष की सगी है, या
यह रिश्ता भी एक ठगी है.

@ पति-पत्नी का रिश्ता एक ठगी है.

वे ठग लेते हैं परस्पर की उच्चताओं को, या फिर

ठग जाते हैं परस्पर की उच्चताओं से.

और यही परस्पर की ठगाई उन्हें सगा बनाती है.

प्रतुल वशिष्ठ said...

माँ - ममता की परिभाषा है, या
होना इसका भी एक निराशा है.

@ हाँ, माँ ममता का पर्याय है.

इसलिये वह निराशा में भी कामधेनु गाय है.

प्रतुल वशिष्ठ said...

नारी - नाम है स्वाभिमान का, या
इसका हर रिश्ता है अपमान का.

@ ना-ना-ना, अरी !

इन नकारात्मक विचारों को कर लो घरी !!

ईशान् से लेकर आओ दिविता परी!!!

प्रतुल वशिष्ठ said...

क्या कोई नाम भी दिया जा सकता हैं इस कविता को ???
@ हाँ, इस कविता को एक ही नाम दिया जा सकता है : अबला नारी के चश्मे से...

Dr. sandhya tiwari said...

नारी स्वाभिमान है , सम्मान है और सभी रिश्तों की शुरुआत है

दस्तक said...

@pratul ji... aap ka is kavita ko diya hua naam hi ye btata hai ki aap naari ko samman shabdo me to zaroor dete hai.. acchi baat hai.... aur jo bhi maine likha hai uski haqiqat kahi na kahi aap bi jaante hai..farq sirf itna hai ki aap us haqiqat ko maan nahi rahe....... aap khud apne aas pass ke kisse, roz ke akhbaar me padh rahe hai.. chahe dahej hatya ho, female foeticide ho, ya females pe ho rhe aur bhi atyaachaar ho sab ro ba ro hai... navaratra me deviyo ka samman to hota hai par asal zindagi mee stiriyo ka samman kahi missing hai.. newayz... tym mile to zaroor dekhiyega http://www.youtube.com/watch?v=GE2jY8q4_3s

Pawan Kumar said...

बहुत सुन्दर....

Kailash Sharma said...

बेहतरीन प्रस्तुति...

Vaishnavi said...

naari to naam hai prem or shrradha ka
jise purosh warg thgta hai de ke vasta jane kin kin baat ka ,bati ,bahoo, patni,yaa fir maa,sab us khuute ki mohtaaj hoti hai,jineh ek se dusre khute mai sthanatantri kar diya jaata hai,samman, shrradha,sab dhong bhare shabd hai sach to ye hai,har koi apni iccha or jarrorato ke mutabik uska proyag karta hai, NAARI TO KEVAL EK VASTU HAI!!!!!!!!!!

nanditta said...

nayii saarthk pahal ke liye badhaaii

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

यह जो "या" है न ! अपवाद है यह। स्वीकारता हूँ कि विद्रूप हैं हमारे बीच ...हमारे रिश्तों में वह मिठास नहीं रही अब। पर एक पैरामीटर है हमारे सामने उसे रखकर ही हमें आगे बढ़ना अभिलषित है। किसी विद्रूप के कारण एक आदर्श पैरामीटर की अवहेलना नहीं की जा सकती। भारतीयों के मन में नारी के प्रति एक सहज सम्मान का भाव है।

Asha Joglekar said...

यह नारी है जो बेटी बहू पत्नी माँ बन कर छली ही जाती है । बहुत ही सही और सटीक प्रस्तुति ।

प्रतुल वशिष्ठ said...

दस्तक देवि! आपकी दस्तक मुझ तक अब पहुँची... शर्मिन्दा हो रहा हूँ विलम्ब से जवाब देने पर.... मैं सम्मान देने में आज तक भेद न कर पाया अपने परिचितों में.... फिर भी नव-परिचितों के प्रति अतिरिक्त स्नेह और अतिरिक्त श्रद्धा के भाव बुदबुदाते हैं... और कसौटी पर कसकर सामान्य हो जाते हैं.

मेरे आवास के आसपास और अखबार का सूचना-विन्यास जैसा भी है... उससे सत्य का ५० प्रतिशत ही व्यक्त होता है. और कभी-कभी तो 'सत्य से विपरीत' को सत्य दिखाता है.

कुछ बातों से उजागर करता हूँ.... 'नारी' के प्रति पुरुषवादी व्यक्त सम्मान को :

- संबोधन रूप में.... बहुतों को 'आदरसूचक' शब्द रास नहीं आते. आदरणीय, देविजी, माताजी, बहिनजी आदि.
- बातचीत में.... कुछ को 'आप' पसंद है तो कुछ को 'तुम'.... और किसी-किसी को तो बदतमीजी वाली भाषा ही पचती है, इसी कारण संस्कारित भाषा पर वो 'डोली बिंद्रा' रूप में रिएक्ट करती हैं.
- व्यवहारिक रूप में.... 'नवरात्रों को देवीपूजन' व्याज से 'कंजक बैठाना' स्त्री व्रतधारियों में प्रतिस्पर्धा भाव से निर्वाहित होता है. चाहे जितना भी भोजन बरबाद हो, चिंता नहीं. फिर भी पुरुष इन समस्त कार्यों में साथ रहता है.


मेरा मानना है.... अति+आचार के दोनों रूप समाज में परस्पर कारक-कार्य संबंध बनाए हैं.

अतिआचार का संस्कारित रूप भारतीय समाज में स्वीकार्य रहा है. तभी एक सूत्र ने आज तक अपनी जड़ें जमाये रखी हैं : 'यत्र नार्यस्ते पूज्यन्ते..." यहाँ नारी को 'विशेष' का दर्जा मिला. उसे देवितुल्य माना गया.

अतिआचार का विकृत रूप 'अत्याचार' कहा जाता है. जिसमें नारी को सामान्य से भी कमतर आँका गया और उसे उपभोग वस्तु मात्र समझा गया.

..... यह स्वभाविक है 'जो सम्मान की विशेष चाहना रखे' वह एक समय बाद 'वस्तु' रूप में आदर आती है.

जो बल के आधार पर अपेक्षाकृत अधिक रक्षा/सुरक्षा की आकांक्षी हो.

जो भावुकता के आधार पर अपेक्षाकृत अधिक संवेदनशील होने से विशेष निगरानी की प्रत्याशी हो.

जो सृष्टि धर्म निभाने के सबसे करीब होने से उचित-अनुचित निर्णयों में स्वयं सक्षम न हो.

.... उसे ऐसे में अलग-अलग बौद्धिक स्तर के लोग अलग-अलग ढंग से पेश जाते हैं. कोई उसे पैर की जूती कहता है, कोई उसे सहचरी मानता है तो कोई उसे सिरमौर. इसी कारण वह 'कन्या-भ्रूण ह्त्या', 'स्त्री-शिक्षा' और 'दहेज़ ह्त्या' पर अलग-अलग मत रखता है.

आनन्द विक्रम त्रिपाठी said...

नारी सृष्टि की असली रचयिता है ,नारी के बारे में अब इससे ज्यादा कुछ कहने की मेरी हिम्मत नहीं है|

Asha Lata Saxena said...

नारी सृष्टि की सबसे सुन्दर कृति है जो उसका महत्व नहीं जानता वह निपट गवार और अंगूठा टेक है |
आशा

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

ईश्वर ने तो नर और नारी को आधा-आधा बनाया जो मिलकर एक बनते हैं। जो कुछ भी सृजित होता है वह इनके द्वारा मिलकर ही होता है। नारी की जो कमजोर और नकारात्मक छवि यहाँ दिखायी गयी है वह भी दोनो ने मिलकर ही सृजित की है। मैं इन्हें बराबर का दोषी मानता हूँ।

Unknown said...

Isha Ji, muje is kavita ka uchit sirshak "Antaradavandh" jyada sahi lagta hai kayonki muje lagta hai jin sawalon ke uttar samne hote huye bhi hum nirnay kar na panye to ye sithati utpanna hoti hai.

Unknown said...

Isha Ji, muje is kavita ka uchit sirshak "Antaradavandh" jyada sahi lagta hai kayonki muje lagta hai jin sawalon ke uttar samne hote huye bhi hum nirnay kar na panye to ye sithati utpanna hoti hai.

रचना अग्रवाल said...

इस कविता का शीर्षक यही हो सकता है

"ढोंगी समाज की रचित नारी"
अर्थात नारी की शक्ति को ही उसकी कमजोरी बना डाला इस ओछी मानसिकता वाले समाज ने