सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Saturday, October 1, 2011

योद्धा

जब भी दिखा हैं मुझे क़ोई योद्धा
नारी के हक़ की लड़ाई लड़ता
उसके आस पास दिखा हैं
एक मजमा उसको समझाता

क़ोई उसको माँ कहता हैं
क़ोई कहता हैं दीदी
क़ोई कहता हैं स्तुत्य
क़ोई कहता हैं सुंदर

और
फिर इन संबोधनों में
वो योधा कहां खो जाता हैं
पता ही नहीं चलता हैं

और
रह जाती हैं बस एक नारी
कविता , कहानी लिखती
दूसरो का ख्याल रखती
तंज और नारियों को
नारीवादी होने का देती

ना जाने कितने योद्धा
कर्मभूमि में कर्म अपने
बदल लेते हैं

और
मजमे के साथ
मजमा बन जीते हैं





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10 comments:

Asha Joglekar said...

फिर इन संबोधनों में
वो योधा कहां खो जाता हैं
पता ही नहीं चलता हैं

और
रह जाती हैं बस एक नारी

यही होता है । इन आकर्षक संबोधनों में इन अलंकारों में वह योध्दा कहीं खो जाता है । सुंदर प्रेरक कविता हर नारी को अपने अंदर के योध्दा को जिंदा रखने के लिये ।

#vpsinghrajput said...

बढ़िया प्रस्तुति ||

बहुत-बहुत बधाई ||

Rewa Tibrewal said...

wah...bahut khoob...really

Always Unlucky said...
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sumeet "satya" said...

umda

Mukta Dutt said...

bahut khoob likha h aapne.

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बहुत सुंदर
क्या कहने

Anamikaghatak said...

sarthak wa styavachan ko prastut karti hui apki kavita ne man moh liya....wakai bahut sundar

SANDEEP PANWAR said...

बेहद ही बढिया सच्चा लिखा है।

Naveen Mani Tripathi said...

रह जाती हैं बस एक नारी
कविता , कहानी लिखती
दूसरो का ख्याल रखती
तंज और नारियों को
नारीवादी होने का देती

bahut hi sundar prashtuti ...abhar