जब भी दिखा हैं मुझे क़ोई योद्धा
नारी के हक़ की लड़ाई लड़ता
उसके आस पास दिखा हैं
एक मजमा उसको समझाता
क़ोई उसको माँ कहता हैं
क़ोई कहता हैं दीदी
क़ोई कहता हैं स्तुत्य
क़ोई कहता हैं सुंदर
और
फिर इन संबोधनों में
वो योधा कहां खो जाता हैं
पता ही नहीं चलता हैं
और
रह जाती हैं बस एक नारी
कविता , कहानी लिखती
दूसरो का ख्याल रखती
तंज और नारियों को
नारीवादी होने का देती
ना जाने कितने योद्धा
कर्मभूमि में कर्म अपने
बदल लेते हैं
और
मजमे के साथ
मजमा बन जीते हैं
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सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता
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10 comments:
फिर इन संबोधनों में
वो योधा कहां खो जाता हैं
पता ही नहीं चलता हैं
और
रह जाती हैं बस एक नारी
यही होता है । इन आकर्षक संबोधनों में इन अलंकारों में वह योध्दा कहीं खो जाता है । सुंदर प्रेरक कविता हर नारी को अपने अंदर के योध्दा को जिंदा रखने के लिये ।
बढ़िया प्रस्तुति ||
बहुत-बहुत बधाई ||
wah...bahut khoob...really
umda
bahut khoob likha h aapne.
बहुत सुंदर
क्या कहने
sarthak wa styavachan ko prastut karti hui apki kavita ne man moh liya....wakai bahut sundar
बेहद ही बढिया सच्चा लिखा है।
रह जाती हैं बस एक नारी
कविता , कहानी लिखती
दूसरो का ख्याल रखती
तंज और नारियों को
नारीवादी होने का देती
bahut hi sundar prashtuti ...abhar
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