सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता
Saturday, June 4, 2011
बलात्कार के बाद का बलात्कार .कविता केसर क्यारी ....उषा राठौड़
केसर क्यारी ....उषा राठौड की कविता
बलात्कार के बाद का बलात्कार
मेरी एक नन्ही सी नादानी की इतनी बड़ी सजा ?
डग भरना सिख रही थी,
भटक कर रख दिया था वो कदम
बचपन के आँगन से बाहर ...
जवानी तक तो मै पहुंची भी नहीं थी कि
तुमने झपट्टा मार लिया उस भूखे गिद्ध की मानिंद
नोच लिए मेरे होंसलों के पंख
मरे सीने का तो मांस भी भरा नहीं था कि
तुमको मांसाहारी समझ के छोड़ दूं
टुकड़ों मे काट दिया है तुमने मेरी जिंदगी को
अब ना समेट पाऊँगी
अपनी नन्ही हथेलियों से
मेरे मुंह पर रख के हाथ जितना जोर से दबाया था
काश एक हाथ मेरे गले पे होता तुम्हारा
तो ये अनगिनित निगाहे यूं ना करती आज मेरा
बलात्कार के बाद का बलात्कार .
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5 comments:
कविता और गाम्भीर्य की मांग करती है।
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कौमार्य के प्रमाण पत्र की ज़रूरत?
ब्लॉग समीक्षा का 17वाँ एपीसोड।
वहाँ पढ़कर लौट आई थी स्तब्ध सी...कुछ कह न पाई थी...कुछ शब्द और भाव मूक कर देते हैं...
स्तब्ध करती रचना, विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
ek behad khoobnsurat rachna
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मैं , मेरा बचपन और मेरी माँ || (^_^) ||
Daarun ..dard deti dastan..aah...
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