सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Wednesday, May 11, 2011

गृहणी

मैंने उसे देखा है

मौन की ऊँची-ऊँची दीवारों से घिरी

सपाट भावहीन चेहरा लिये वह

चुपचाप गृह कार्य में लगी होती है

उसके खुरदुरे हाथ यंत्रवत कभी

सब्जी काटते दिखाई देते हैं ,

कभी कपड़े निचोड़ते तो

कभी विद्युत् गति से बच्चों की

यूनीफ़ॉर्म पर प्रेस करते !

उसकी सूखी आँखों की झील में

पहले कभी ढेर सारे सपने हुए करते थे ,

वो सपने जिन्हें अपने विवाह के समय

काजल की तरह आँखों में सजाये

बड़ी उमंग लिये अपने पति के साथ

वह इस घर में ले आई थी !

साकार होने से पहले ही वे सपने

आँखों की राह पता नहीं

कब, कहाँ और कैसे बह गये और

उसकी आँखों की झील को सुखा गये

वह जान ही नहीं पाई !

हाँ उन खण्डित सपनों की कुछ किरचें

अभी भी उसकी आंखों में अटकी रह गयी हैं

जिनकी चुभन यदा कदा

उसकी आँखों को गीला कर जाती है !

कस कर बंद किये हुए उसके होंठ

सायास ओढ़ी हुई उसकी खामोशी

की दास्तान सुना जाते हैं ,

जैसे अब उसके पास किसीसे

कहने के लिये कुछ भी नहीं बचा है ,

ना कोई शिकायत, ना कोई उलाहना

ना कोई हसरत, ना ही कोई उम्मीद ,

जैसे उसके मन में सब कुछ

ठहर सा गया है, मर सा गया है !

उसे सिर्फ अपना धर्म निभाना है ,

एक नीरस, शुष्क, मशीनी दिनचर्या ,

चेतना पर चढ़ा कर्तव्यबोध का

एक भारी भरकम लबादा ,

और उसके अशक्त कन्धों पर

अंतहीन दायित्वों का पहाड़ सा बोझ ,

जिन्हें उसे प्यार, प्रोत्साहन, प्रशंसा और

धन्यवाद का एक भी शब्द सुने बिना

होंठों को सिये हुए निरंतर ढोये जाना है ,

ढोये जाना है और बस ढोये जाना है !

यह एक भारतीय गृहणी है जिसकी

अपनी भी कोई इच्छा हो सकती है ,

कोई ज़रूरत हो सकती है ,

कोई अरमान हो सकता है ,

यह कोई नहीं सोचना चाहता !

बस सबको यही शिकायत होती है

कि वह इतनी रूखी क्यों है !


साधना वैद



© 2008-13 सर्वाधिकार सुरक्षित!

4 comments:

vandana gupta said...

एक गृहिणी की वेदना को साकार कर दिया।


आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (12-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/

वाणी गीत said...

आम गृहिणियों की पीड़ा अच्छी तरह व्यक्त की है ..

मगर समय के साथ गृहिणियां भी बदल रही हैं , उनकी भूमिका भी ...अब वे परिवार के साथ अपने लिए भी समय निकलती हैं !

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

गृहणियों का सटीक चित्र खींच दिया है ..

मीनाक्षी said...

अक्सर यही रूप देखने को मिलता है...कविता के माध्यम से सजीव चरित्र चित्रण ..लेकिन अब धीमी चाल से ही लेकिन स्थिति बदल रही है..