सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Thursday, April 7, 2011

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर ......आनंद द्विवेदी ०८/०३/२०११

आज कि कविता अतिथि कवि कि हैंकवि का नाम हैं आनंद द्विवेदी हैं
कविता का शीर्षक हैं

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर ......


क्रांति कर दिया हमने तो
अरे महिलाओं की बात कर रहा हूँ.....
एकदम बराबरी का दर्ज़ा दे दिया जी
कई कानून बना दिए इसके लिए
अब औरत को दहेज़ के लिए नहीं जलाया जा सकता
कार्यालयों में उसके साथ छेड़खानी नहीं की जा सकती
उसके कहीं आने जाने पर पाबन्दी नहीं है
और तो और ...
हमने सेनाओं में भी उसके लिए द्वार खोल दिया हैं
वगैरह वगैरह!
वो जरा सी अड़चन है नहीं तो
उसे ३० प्रतिशत आरक्षण भी देने वाले हैं 'हम '
दोस्तों!
न जाने क्यूँ मुझे लगता है
कि नाटक कर रहे हैं हम
बढती हुई नारी शक्ति से हतप्रभ हम
उसे किसी न किसी तरीके से
बहलाए रखना चाहते हैं...
उसे उसकी स्वाभाविक स्थिति से
आखिर कब तक रोकेंगे हम ...?
वो जाग गयी है अब
और हमने पुरुष होने का टप्पा बांधा हुआ है आँखों पर,
गुजारिश है कि अब हम
उसे कुछ और न ही दें तो अच्छा है.
वो वैसे ही बहुत कृतज्ञ है हमारी
हर जगह हमारी भूखी निगाहों से बचते हुए
बगल से निकल जाने पर बे वजह धक्का खाते हुए
बसों में ट्रेनों में ,
स्कूल जाते हुए, आफिस जाते हुए
बाज़ार जाते हुए,
"उधर से नहीं उधर सड़क सुनसान है "
जरा सा अँधेरा हो जाये तो ...
ऊपर से सामान्य पर अन्दर से कांपते हुए ...
वो हर समय
हमारी कृतज्ञता महसूस करती है...


अगर सच में हमें कुछ करना है
तो क्यूँ न हम यह करें ...कि
दाता होने का ढोंग छोड़ कर
उनसे कुछ लेने कि कोशिश करें
मन से उनको नेतृत्त्व सौप दें
कर लेने दें उन्हें अपने हिसाब से
अपनी दुनिया का निर्माण
तय कर लेने दें उन्हें अपने कायदे
छू लेने दें उन्हें आसमान
और हम उनके सहयात्री भर रहें ...
दोस्तों !
आइये ईमानदारी से इस विषय में सोंचें !!

----आनंद द्विवेदी ०८/०३/२०११




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5 comments:

कविता रावत said...

...सच में आज भी महिलाओं के प्रति भेदभाव जारी है जो आज के पढ़े लिखे कहे जाने वाले समाज की एक बहुत बड़ी त्रासदी है...

बहुत बढ़िया सार्थक सामयिक प्रस्तुति के लिए आभार

आनंद said...

बहुत बहुत धन्यवाद रचना जी ..जो मेरी कविता को पसंद किया और उसे यहाँ स्थान देकर मान बढाया ...मैं यह कहना चाहूँगा कि मेरे लिए यह महज एक कविता नही है...मेरे विचार हैं..और मैंने अपनी छोटी सी दुनिया में इन्हें लागू भी किया हुआ है ...
अगर मेरी कविता किसी को भी सोंचने पर मजबूर कर सकी तो समझो इसका जन्म सफल हुआ !!

manasvinee mukul said...

सच कहा आपने द्विवेदी जी मानसिकता तो बदल नहीं रही फिर क़ानून बदलने से क्या फायदा ? सख्त ज़रूरत है मानसिकता में परिवर्तन की .यदि समय निकाल सकें तो कभी naarihun.blogspot.com पर आकर मेरा उत्साहवर्धन करें .

Amrita Tanmay said...

imandaari soch tak hi simit rah jati hai...

Nirantar said...

इतना सा बता दो(हास्य कविता)
कैसे हमें देख लें ?
ह्रदय की बात सुन लें
पत्नी उन्हें बना लें
इतना सा बता दो
रूठ जाएँ तो
कैसे उन्हें मनाएं ?
इतना सा बता दो
क्रोध में
आग बबूला हो जाएँ
कैसे उन्हें ठंडा करें ?
इतना सा बता दो
चुप हो जाएँ
एक शब्द भी ना बोलें
कैसे बुलवाएँ ?
इतना सा बता दो
किसी से
हँस कर बात कर लें
वोउसे सौत समझ लें
कैसे उन्हें समझाएँ ?
इतना सा बता दो
चलो नारियों से ही
पूंछ लें
पत्नी को कैसे खुश
रखा जाए ?
इतना सा बता दो
08-03-2012
324-58-03-12
(अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर कविता)