सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Tuesday, January 18, 2011

स्त्री होने का सुख

आज जो यह रचना आप सब के समक्ष प्रस्तुत है वह मेरी खुद की रचना नहीं है लेकिन फिर भी उसे मैं यँहा लायी हूँ क्यूंकि यह रचना नारी आधारित है और लिखी भी गयी है एक नारी द्वारा हीं और ऐसे में अगर यह नारी के कविता ब्लॉग तक न पहुंचे तो नाइंसाफी होगी | यह रचना है श्रीमती सीमा भट्ट जी की और इसे मैं बाकायदा इजाजत लेकर लायी हूँ उनके श्रीमान हरीश भट्ट जी के ब्लॉग उद्घोष से आशा है आप सब को यह उत्कृष्ट रचना पसंद आएगी और अपनी टिप्पनिओं से इसे यथोचित सम्मान प्रदान करेंगे |














अपनत्व से स्रिजत्व की
परिणिता से मातृत्व की  
परिभाषाए स्वीकारते, स्वीकारते
देखती थी जब,
तो गर्व होता था
स्वयं के होने को
स्त्री का,

किंतु आज
जब मैं खोजती हूँ
हर स्त्री मैं
नैसेर्गिक सुंदरता
करुणा-शील-धेर्य का स्पंदन,
तो पाती हूँ
एक कृत्रिमता
निर्जीव सी तस्वीर नज़र आती हैं
अर्धनग्न ओर कुत्सित भी,
सोचती हूँ
समानता का अधिकार
पुरुष से मेरा संबल हैं
या मेरा विकार,
मैं तो श्रेष्ठा थी
दिग दिगान्तर से,
पूज्‍यनीय भी
पुरुष द्वारा ओर
समाज द्वारा भी,
ओर समानता का 
ये अधिकार भी कैसा
बस मैं सीट ओर टिकट  
प्राप्त करलेने भर जेसा,
शारीरिक हो केवल
बौद्धिक ना हो जैसे,

समानता तो तब हैं की
मैं बस स्टाप से अकेले
घर तक आ पाऊ
बिना किसी की
चुभती आँखो का सामना किए ,
जब मैं चुन सकु अपना सत्व
सामाजिकता की परिधि मैं,
चुनाव ही तो हैं
हे राम !!
सीता होने का दर्शन
तो तुमने मुझे दिया था
पर उर्मिला होने का धेर्य तो
मैने खुद ही चुना था,

ओर मेरे लिए तो
ये भी बहुत हैं
की वो कहें किसी दिन

प्रिय
आज तुम उनिग्ध सी हो
.
उठों मत
.
रहने दो !!!
.
लो ...
आज
चाय
मैने बनाई हैं ...........!!!!


 © 2008-10 सर्वाधिकार सुरक्षित!

17 comments:

रेखा श्रीवास्तव said...

नारी के उद्गारों को बहुत सुन्दरता से पेश किया है, वाकई समानता जिसमें पाने की चाहत है वह सच्ची समता है और ये किसी के द्वारा उपहार में नहीं दी जा सकती है. ये तो सोच को बदलने का रास्ता है और जब ये सोच बदल जाएगी तो ऐसी कोई भी मांग का औचित्य नहीं रह जायेगा.

vandana gupta said...

एक सशक्त सोच को परिलक्षित करती सशक्त अभिव्यक्ति…………शायद तभी स्त्री होने का सुख सार्थक होगा।

कविता रावत said...

हे राम !!
सीता होने का दर्शन
तो तुमने मुझे दिया था
पर उर्मिला होने का धेर्य तो
मैने खुद ही चुना था
......बहुत उत्कृष्ट रचना ....प्रस्तुति के लिए आभार

Patali-The-Village said...

एक सशक्त सोच को परिलक्षित करती सशक्त अभिव्यक्ति| आभार|

Alokita Gupta said...

Pahle socha apni hi post par kya comment karu? fir socha post meri hai to kya rachna to meri nahi to comment to de hi sakti hun......chaliye koi baat nahi subh number par pahuchi hun
5wan comment jo hai. hahahaha
mujhe to bahut mast lagi ye kavita jab jab padhi aur achi lagi bilkul madhusala type i mean hala type jitni purani utni nasili hahahahaha
mujhe kitni achi lagi batane ki jarurat nahi is rachna ka yanhaa hona hi iska subut de raha hai.
haath kangan ko arsi kya?

nilesh mathur said...

बेहतरीन अभिव्यक्ति! बहुत सुन्दर!

Shalini kaushik said...

bahut sundar abhivyakti

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

ek chhubhti hui kavita.....

Unknown said...

बहुत अच्छी कविता है।
मेरी भी कविता पढ़ी जाय।
www.pradip13m.blogspot.com

शिव शंकर said...

एक सशक्त सोच को परिलक्षित करती सशक्त अभिव्यक्ति......
अच्छी प्रस्तुति,धन्यवाद ।

हरीश भट्ट said...

shukriya alokita
seema ji ki rachna yaha share karne ke liye

stri hone ka sukh wakai stritv ka udvhav hain bahut badhai is rachna ke liye seema ji ko
or sudhi pathko ko dhanywad

Devi Nangrani said...

Bahut sunder uddgaron ko abhivyakt kiya hai. badhayi ho Alokitaji

ManPreet Kaur said...

Happy Republic Day..गणतंत्र िदवस की हार्दिक बधाई..

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mridula pradhan said...

bahut sunder kavita.

Rashmi Swaroop said...

bahut sundar.. chhu gayi man ko.. :)

Unknown said...

bahu acha.. mere pas bhi is blog me share karne layak ek rachna hai.. main yaha tak kaise pahuchaun?? please bataye mujhe..

रचना said...

pradeep
aap apni kavita
indianwomanhasarrived@gmail.com par bhej dae