वो कली जब गोद आयी ,
साँस थी महक गयी,
धीरे से जब मुस्कुराई ;
मोती से झोली भर गयी।
माँ कहा जब प्यार से;
मुझको तो जन्नत मिल गयी।
ऊँगली पकड़ कर जब चली;
खुशियाँ ही खुशियाँ छा गयी।
है मुझे गर्व खुद पर;
था लिया निर्णय सही।
भ्रूण हत्या को किया था;
दृढ़ता से मैंने नहीं।
जो कहीं कमजोर पड़कर;
दुष्कर्म मैं ये कर जाती;
फिर ये नन्ही सी कली ,
कैसे मेरे घर आ पाती?
ये महकेगी,ये चहकेगी,
सारे घर की रौनक होगी।
मेरी बिटिया की किलकारी;
पूरी दुनिया में गूंजेगी.
सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता
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4 comments:
good poem with a message
thanks a lot for apreciation .
aaj aise hi vicharon ki aavshyakta hai jinke jariye ham linganupat ko samanta par la sakte hain aur ladkiyon ko sans lene yukt hawa de sakte hain.sundar bhavpoorn rachna...
bahut -sundar prasansaniy rachanaa
hardik subhkaamnaayen
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