मेरी माँ ने मुझको देखा,देख के वो यूं बोली,
बिट्टो तूने आकर घर में भर दी मेरी झोली,
माँ के मुहं से ऐसा सुनकर खिल गया मेरा जीवन,
अब सुन्दर मनभावन लगता अपने घर का आँगन,
माँ से ऐसी बात सुनकर मन मेरा लगा नाचने,
नए ख्याल अनोखे सपने आँखों में लगे आने ,
माँ ने ऐसी बात है कह दी सार्थक हुई ज़िन्दगी,
अपने पैरों पर खडी हों सपने उनके पूर्ण करूंगी.
सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता
Monday, January 3, 2011
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6 comments:
bahut hi sundarta ke sath bhavon ko prakat kiya hai .badhai.
bahot sunder bhaw.
bahut acha..
kripya meri kavita padhe aur upyukt raay den..
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मेरी माँ ने मुझको देखा,देख के वो यूं बोली,
बिट्टो तूने आकर घर में भर दी मेरी झोली,
सच कहा जी
sachmuch.....shalini....mere jaise log bhi is baat ke liye uddvelit hain ....ki kab aisa ho....hamare dil se pukaar hai is kavita ke marm ko saakaar hone ki......sach....!!!
shalini ji saperem aadarjog
aapka kavita padha achhaa laga
hardik badhai
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