सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Tuesday, January 11, 2011

कन्या भ्रूण हत्या को मना कीजिये...

वो कली जब गोद आयी ,
साँस थी महक गयी,
धीरे से जब मुस्कुराई ;
मोती से झोली भर गयी।
माँ कहा जब प्यार से;
मुझको तो जन्नत मिल गयी।
ऊँगली पकड़ कर जब चली;
खुशियाँ ही खुशियाँ छा गयी।
है मुझे गर्व खुद पर;
था लिया निर्णय सही।
भ्रूण हत्या को किया था;
दृढ़ता से मैंने नहीं।
जो कहीं कमजोर पड़कर;
दुष्कर्म मैं ये कर जाती;
फिर ये नन्ही सी कली ,
कैसे मेरे घर आ पाती?
ये महकेगी,ये चहकेगी,
सारे घर की रौनक होगी।
मेरी बिटिया की किलकारी;
पूरी दुनिया में गूंजेगी.

4 comments:

रचना said...

good poem with a message

Shikha Kaushik said...

thanks a lot for apreciation .

Shalini kaushik said...

aaj aise hi vicharon ki aavshyakta hai jinke jariye ham linganupat ko samanta par la sakte hain aur ladkiyon ko sans lene yukt hawa de sakte hain.sundar bhavpoorn rachna...

लक्ष्मी नारायण लहरे "साहिल " said...

bahut -sundar prasansaniy rachanaa
hardik subhkaamnaayen