सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Monday, April 12, 2010

'मज़हब' की सलीब पर टंगी औरतें


आज़ाद मुल्क की ग़ुलाम औरतें...

मुस्लिम समाज में
जन्म लेने की
उम्रभर सज़ा भोगतीं
बेबस, लाचार औरतें...
आज़ाद मुल्क की
ग़ुलाम औरतें...

शाहबानो, इमराना
और गुड़िया-सी
कठमुल्लों के ज़ुल्मों की
शिकार औरतें...
आज़ाद मुल्क की
ग़ुलाम औरतें...

'मज़हब' की सलीब पर तंगी
इंसानों के बाज़ार में
ऐश का सामान-सी
हरम में चार-चार औरतें...
आज़ाद मुल्क की
ग़ुलाम औरतें...

इंसाफ़ के लिए
ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने पर
हैवानों के हाथों
सरेआम मरतीं संगसार औरतें...
आज़ाद मुल्क की
ग़ुलाम औरतें...
आज़ाद मुल्क की
ग़ुलाम औरतें...

मुस्लिम समाज में
जन्म लेने की
उम्रभर सज़ा भोगतीं
बेबस, लाचार औरतें...
आज़ाद मुल्क की
ग़ुलाम औरतें...

शाहबानो, इमराना
और गुड़िया-सी
कठमुल्लों के ज़ुल्मों की
शिकार औरतें...
आज़ाद मुल्क की
ग़ुलाम औरतें...

'मज़हब' की सलीब पर टंगी
इंसानों के बाज़ार में
ऐश का सामान-सी
हरम में चार-चार औरतें...
आज़ाद मुल्क की
ग़ुलाम औरतें...

इंसाफ़ के लिए
ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने पर
हैवानों के हाथों
सरेआम मरतीं संगसार औरतें...
आज़ाद मुल्क की
ग़ुलाम औरतें...

पुरुषों को जन्म देने वालीं
मर्दों के शोषण से कराहती
ख़ुद जीने का मांगती
अधिकार औरतें...
आज़ाद मुल्क की
ग़ुलाम औरतें...
-फ़िरदौस ख़ान

6 comments:

kunwarji's said...

"इंसाफ़ के लिए
ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने पर
हैवानों के हाथों
सरेआम मरतीं संगसार औरतें...
आज़ाद मुल्क की
ग़ुलाम औरतें...
आज़ाद मुल्क की
ग़ुलाम औरतें..."

क्या बोले जी हम,
सच में एक मार्मिक रचना!एक शेर सुना था कभी,पता नहीं किस का है,,,,
"दिल के छालो को गर कोई शायरी कहे परवाह नहीं,
तकलीफ तो तब होती है जब लोग वाह-वाह करते है!"
इस तरह की गुलामी के खिलाफ आपकी आवाज सबकी आवाज बने!
शुभकामनाये स्वीकार करें....
कुंवर जी,

रेखा श्रीवास्तव said...

ये सिर्फ एक मजहब कि बात नहीं है, हर मजहब में यही है. बस कहीं कुछ अधिक और कहीं कुछ कम. अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी , सानिया की तरह से मजहब दरकिनार हो जाते हैं. अपनी हिम्मत खुद समेटो और और आगे बढ़ो. हक किसी तश्तरी में रख कर नजर नहीं किये जाते बल्कि उनको छीनना पड़ताहै.

Unknown said...

'मज़हब' की सलीब पर तंगी
इंसानों के बाज़ार में
ऐश का सामान-सी
हरम में चार-चार औरतें...
आज़ाद मुल्क की
ग़ुलाम औरतें...

इंसाफ़ के लिए
ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने पर
हैवानों के हाथों
सरेआम मरतीं संगसार औरतें...
आज़ाद मुल्क की
ग़ुलाम औरतें...
आज़ाद मुल्क की
ग़ुलाम औरतें...

आपने बहुत कम शब्दों में नारी उत्पीड़न की सदियों पुरानी कहानी तक कह दी.
बस, हमेशा इसी तरह लिखते रहना.

नारी ब्लॉग, बहुत अच्छा है. ब्लॉग की नारी शक्ति को नमन !!!

कहत कबीरा-सुन भई साधो said...

फ़िरदौस जी, आपके जज़्बे को सलाम
आपका प्रयास सराहनीय है.
आप अपनी मुहिम को जारी रखिये.
भारत मां के करोड़ों सपूत आपके साथ हैं.

अरुणेश मिश्र said...

उत्कृष्ट ।

संजय भास्‍कर said...

आपके लेखन ने इसे जानदार और शानदार बना दिया है....