आशा जी ने नारी ब्लॉग पर कमेन्ट दिया था वहाँ से मे उनके ब्लॉग तक गयी और इस कविता को पढ़ा आप भी पढे
स्वत्व पर मेरे पर्दा डाला ,
मुझको अपने जैसा ढाला ,
बातों ही बातों में मेरा ,
मन बहलाना चाहा ,
स्वावलम्बी ना होने दिया ,
अपने ढंग से जीने न दिया |
तुमने जो खुशी चाही मुझसे ,
उसमें खुद को भुलाने लगी ,
अपना मन बहलाने लगी ,
अपना अस्तित्व भूल बैठी ,
मन की खुशियां मुझ से रूठीं ,
मै तुम में ही खोने लगी |
आखिर तुम हो कौन ?
जो मेरे दिल में समाते गए ,
मुझको अपना बनाते गए ,
प्रगाढ़ प्रेम का रंग बना ,
उसमें मुझे डुबोते गए ,|
पर मै ऊब चुकी हूं अब ,
तुम्हारी इन बातों से ,
ना खेलो जजबातों से,
मुझको खुद ही जी लेने दो ,
कठपुतली ना बनने दो ,
उम्र नहीं रुक पाती है ,
जीने कीललक अभी बाकी है |
आशा
आशा जी ने नारी ब्लॉग पर कमेन्ट दिया था वहाँ से मे उनके ब्लॉग तक गयी और इस कविता को पढ़ा आप भी पढे
उनके ब्लॉग पर कमेन्ट दे शायाद वो पढ़े क्युकी उनका ईमेल आ ई डी नहीं मिला हैं सो उनको सूचित नहीं कर सकी
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सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता
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8 comments:
Asha ji ko is khoobsoorat rachna ke liye badhai...
बहुत सुन्दर कविता है... बधाई
सुन्दर कविता । आभार ।
आशा जी ने हर औरत की कहानी को अपनी कविता में व्यक्त किया है? यही कहानी है, आज से २ दशक पहले की नारी इससे अधिक कुछ नहीं रह पायी थी. वह आत्मनिर्भर थी तब भी इसकी दायरे में जीते हुए सारे किरदार निभा रही थी. अपने लिए तो शायद ही कुछ पल जिए हों.
नारी जीवन की बिल्कुल सही तस्वीर पेश की है आशा जी ने। स्थितियां अब भी नहीं बदली है, हां कुछ महिलाओं ने अपने जीवन की अलग तस्वीर बनायी है लेकिन अब भी ऐसी महिलाओं की संख्या ज्यादा है जिनका जीवन अपने पिता, पति और भाई के अनुसार गुजरता है।
nari ki manodasha ka sashakt chitran.
आप सब की आभारी हूं जो आपने मुझे और लिखने के लिए प्रेरित किया है |
रचना जी मै आपको अपनी ई मेल आई डी
भेज रहीं हूं |
My email id is as follows-
asha.saxena88@g mail.com
सुन्दर शब्द और भाव लिए है ये कविता ।
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