सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Saturday, August 15, 2009

रहस्यमयी



उम्र कोई हो,
एक लड़की-
१६ वर्ष की,
मन के अन्दर सिमटी रहती है...
पुरवा का हाथ पकड़
दौड़ती है खुले बालों मे
नंगे पाँव....
रिमझिम बारिश मे !
अबाध गति से हँसती है
कजरारी आंखो से,
इधर उधर देखती है...
क्या खोया? - इससे परे
शकुंतला बन
फूलों से श्रृंगार करती है
बेटी" सज़ा-ए-आफ़ता पत्नी" बनती होगी
पर यह,
सिर्फ़ सुरीला तान होती है!
यातना-गृह मे डालो
या अपनी मर्ज़ी का मुकदमा चलाओ ,
वक्त निकाल ,
यह कवि की प्रेरणा बन जाती है ,
दुर्गा रूप से निकल कर
" छुई-मुई " बन जाती है-
यह लड़की!
मौत तक को चकमा दे जाती है....
तभी तो
"रहस्यमयी " कही जाती है...!

13 comments:

Anonymous said...

नारी फिर भी हर हाल में अपने को बचाए रखती है.......अपने लिए नहीं अपनों के लिए.....अपने से ज्यादा उसे अपनों की फ़िक्र रहती है..

अति सुंदर प्रस्तुति,,


धरती सी सहनशीलता है...
आकाश सी विशालता है....
समुद्र सी गहराई है..
नारी ह्रदय का कोई मेल नहीं.....

ईश्वर की भी आराध्य है.....नारी.

anu said...

bahut khub likha hai di

वाणी गीत said...

नारी के रहस्यमयी रूप को अच्छी तरह निरुपित किया है...बधाई.!!

शेफाली पाण्डे said...

नारी के रूप अनेक ...बहुत प्रभावी रचना ...

हेमन्त कुमार said...

नारी के अनेक रंगों को उकेरा है आपने,उसके विविध आयामों से।आभार।

vandana gupta said...

han..........nari ka ek roop ye bhi hai......bahut sundar dhang se ukera hai.

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

kyaa baat hai....is rachna ne mujhe chuppa kar diya....ab kahun to kya kahun...!!

संत शर्मा said...

सधे हुए शब्दों में नारी के रहस्यमयी स्वरुप का चित्रण, बहुत सुन्दर

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

naari ki rahasymayta ka sajeev chitran...badhai

shikha varshney said...

क्या बात है सजीव चित्रण किया है नारी के रूपों का रश्मि दी!

surinder said...

Naari ke alag alag roop .. sahi chitran kiya aapne .. sunder shabdon mein piroya... Surinder Ratti

मुकेश कुमार सिन्हा said...

Nari ke saare swaroop, ek se badh kar ek........khubsurat rachna......as usual "di"......superb

Unknown said...

कभी खामोशी भी बहुत कुछ कह जाती है ,
bahut khub likha hai aapne