आज पितः दिवस पर कहने और लिखने के लिए बहुत कुछ सोचा ,मगर बस स्नेह के अलावा और कुछ समझ न आया ,बहुत पहले लिखे कुछ ख्याल है
नयनो की जलधारा को, बह जाने दो सब कहते
पर तुम इस गंगा जमुना को मेरे बाबुल कैसे सहते
इसलिए छूपा रही हूँ दिल के एक कोने में
जहाँ तेरे संग बिताए सारे पल है रहते
होठों पर सजाई हँसी,ताकि तू ना रोए
इन आखरी लम्हों को,हम रखेंगे संजोए
आज अपनी लाड़ली की कर रहे हो बिदाई
क्या एक ही दिन मे, हो गयी हू इतनी पराई
जानू मेरे जैसा तेरा भी मन भर आया
चाहती सदा तू बना रहे मेरा साया
वादा करती हूँ निभाउंगी तेरे संस्कार
तेरे सारे सपनो को दूँगी में आकार
कैसी रीत है ये,के जाना तेरा बंधन तोड़के
क्या रह पाउंगी बाबुल, मैं तेरा दामन छोड़के.
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता
Sunday, June 21, 2009
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6 comments:
itane bhawpurn hai ki aankh me aansu aa gaye .....badhiya .......badhaaee
bahut achchh likh hai aapne.har pita sanskaron ki shiksh to deta hi hai aur asha yahi karta hai ki ham use amal mein layein.
Navnit Nirav
waah mehak
acchha likha haen
Rachna
mahak ye kyaa kiyaa meree aaMmkho me aaMMsoo laa diye betee kaa pitaa se piaar maa se bhee gaharaa hotaa hai bahut sundar racanaa aabhaar
भावपूर्ण रचना. पितृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.
जानू मेरे जैसा तेरा भी मन भर आया
चाहती सदा तू बना रहे मेरा साया
वादा करती हूँ निभाउंगी तेरे संस्कार
तेरे सारे सपनो को दूँगी में आकार
कैसी रीत है ये,के जाना तेरा बंधन तोड़के
क्या रह पाउंगी बाबुल, मैं तेरा दामन छोड़के.
उत्तम बहुत उत्तम!
बीस दिन से अधिक दिनों बाद ब्लोग पर रचना देखने को मिली किन्तु देर आये दुरस्त आये रचना अच्छी लगी
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