सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Friday, May 29, 2009

सबके लिये क्यूँ नहीं हैं

कम उम्र विवाहिता
माँ नहीं बना चाहती
समाज कहता हैं
नहीं गर्भपात नहीं करवा सकती

कम उम्र अविवाहिता
माँ बनना चाहती हैं
समाज कहता हैं
नहीं गर्भपात करवा दो

बच्चे का आना
खुशी अगर हैं
माँ बनना खुशी अगर हैं

तो सबके लिये क्यूँ नहीं हैं

{ बालिका वधु सीरीयल की आज की कड़ी देखकर बस यही समझ आया }

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Thursday, May 14, 2009

बेटे जैसी नहीं होती हैं बेटियाँ

मेरी बेटी किसी बेटे से कम नहीं
कह कर कब तक
बेटी को बेटे से कमतर मानोगे
और
कब बेटी को सिर्फ़ और सिर्फ़ इस लिये चाहोगे
कि वो बेटी तुम्हरी हैं

हर समय बेटे रूपी कसौटी पर
क्यों बेटियों के हर किये को
कसा जाता हैं


और कब तक बेटियों को
अपना खरा पन
बेटे नाम कि कसौटी पर
घिस घिस कर
साबित करना पडेगा

कुछ इतिहास हमे भी बताओ
कुछ कारण यहाँ भी दे जाओ
बेटो ने ऐसा क्या किया
जो बेटी को बेटे जैसा
तुम बनाते जाते हो
और उसके अस्तित्व को
ख़ुद ही मिटाते जाते हो

या
बेटे जैसा कह कर
अपने मन को संतोष तुम देते हो

बेटा और बेटी
दोनों अंश तुम्हारे ही हैं
फिर जैसा कह कर
एक आंख को क्यूँ
दूसरी से नापते हो


बेटे जैसी नहीं होती हैं बेटियाँ
बेटियाँ बस बेटियाँ होती हैं





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Wednesday, May 13, 2009

ईश्वर बस बेटी न देना

लडकियां इतना कैसे लड़ लेती हैं
कैसे अपने लिये हर जगह
जगह बना लेती हैं ??
कैसे जीतना हैं उनको
अपना मिशन बना लेती हैं ??
कैसे कम खाना खा कर भी
सेहत सही रहे ये जान लेती हैं ??

बहुत आसन हैं
जब माँ के पेट मे होती हैं
तभी से सुनती हैं
माँ की हर धड़कन कहती हैं
इश्वर लड़की ना देना
जो कष्ट मैने पाया
वो संतान को पाते ना देख पाउंगी
हे विधाता बेटी ना देना

बस यही सुन सुन कर नौ महीने मे
माँ के खून के साथ
सरवाईवल ऑफ़ फीटेस्ट
की परिभाषा
को जीती हैं लडकियां

और

जिन्दगी की आने वाली लड़ाई के लिये
अपने को तैयार कर लेती हैं

हर सफल लड़की के पीछे
होती हैं एक माँ की
कामना की
ईश्वर बस बेटी न देना



कुछ कमेंट्स पढ़ने के बाद ये लिखना जरुरी होगया हैं की ये किसी माँ की कामना नहीं हैं की उसके बेटी ना हो ये एक माँ का दर्द हैं जो ईश्वर से बेटी न देने की प्रार्थना कर रहा हैं कल मेरी एक दोस्त ने बताया था की वो अपनी बेटी के लिये विवाह योग्य वर देख रही हैं पर नहीं मिल रहा और क्युकी उसकी शादी से ले कर उसकी बेटी की शादी तक मे भी समाज मे कुछ नहीं बदला हैं । आज भी बेटी की शादी केवल और केवल पैसे से ही होती हैं ।
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Sunday, May 10, 2009

उड़ान


चंचल मन की चाह अधिक है

कोमल पंख उड़ान कठिन है

सीमा छूनी है दूर गगन की

उड़ती जाऊँ मदमस्त पवन सी

साँसों की डोरी से पंख कटे

पीड़ा से मेरा ह्रदय फटे

दूर गगन का क्षितिज न पाऊँ

आशा का कोई द्वार ना पाऊँ !

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