सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Monday, October 27, 2008

शुभा की कुछ और कविताएं

चिट्ठा चर्चा में अनूप शुक्ला ने `औरतों की कविताएं' पसंद करते हुए उनमें से एक कविता उद्धृत भी की है। उनकी एक व्यंग्य भरी शिकायत मेरी एक पंक्ति पर भी है और उन्होंने कहा है - `औरतों की कवितायें : औरतों की हैं,औरतों के बारे में हैं, औरतों के लिए हैं। मर्द पड़ेंगे तो समझ लें!`
सबसे पहले तो माफी औरतों की कविताओं को औरतों की कहने के लिए। वैसे भी हम गुलामों को कोई भी काम अपने लिए करने की मनाही रही है। अभी तो हमारे उन कामों का भी कोई खाता नहीं है जो सदियों से पुरुषों की सेवा में कए जा रहे हैं। लिखना-पढ़ना तो यों भी हमारे लिए सदियों तक वर्जित रहा। वैसे इन कविताओं को औरतों के लिए कहने के पीछे कोई मंशा नहीं थी। पुरुष वाकई हमारी लिखी चीजें पढ़ना, उन पर विचार करना और इस दुनिया को ज्यादा न्यायसंगत बनाने की लड़ाई में साथ देना चाहें तो इससे बेहतर क्या हो? आखिर जिस बेहतर समाज की लड़ाई हम औरतों के कंधों पर है, वो बेहतर समाज यहां रहने वाले सभों का ही है और इस लड़ाई में जिम्मेदारी भी सभों की बनती है।

रचना ने शुभा के बारे में जानना चाहा है, हालांकि अभी आलोचना की पुरुष दुनिया के पास एसे टूल्स नहीं हैं जो हम औरतों की लिखे-कहे को और उसके पीछे छिपे सार को देख सकें। लेकिन इस पुरुष दुनिया के पास एसे टूल्स बहुतायत में हैं जिनके जरिए वह हर विद्रोही स्वर को अनुकूलित कर लेती है। हम देख सकती हैं कि इन दिनों महिला लेखन के नामपर बहुतायत में एसा लिखा जा रहा है जो पहली नजर में विद्रोह लगता तो है लेकन साहित्य की दुनिया के संचालकों को जरा भी विचलित करने के बजाय सुकून देता है। धुर स्त्री विरोधी कट्टरवादी संघों-जमातों की बात छोड़ दें, स्त्री मुक्ति के मसीहा बने बैठे कितने ही राजेंद्र यादवों (यहां तमाम प्रगतिशील नामवर पुरुषों के नाम बदल-बदल कर पढ़ें) को अपनी छांव में एसा स्त्री लेखन पालने-पोसने का खासा शौक रहा है। सौभाग्य से शुभा की जो भी चीजें इधर-उधर छपीं देखीं, वे संरक्षकों के इस सुकून को भंग करती हैं।


शुभा अलीगढ़ में पैदा हुईं और एमए तक की शिक्षा उन्होंने वहीं पूरी की। 1977 के आसपास के कुछ वर्ष उन्होंने जेएनयू में बिताए। रोहतक (हरियाणा में) के एक कालेज में पढ़ाती हैं। नवजागरण मुहिम में बतौर एक्टिविस्ट हरियाणा के गांवों की खासी खाक छान चुकी हैं और इस वजह से लिखना बुरी तरह प्रभावित रहा है। छपा तो और भी कम है।
बहरहाल, दोस्तों के अनुरोध पर शुभा की कुछ और कविताएं-

आदमखोर
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एक स्त्री बात करने की कोशिश कर रही है
तुम उसका चेहरा अलग कर देते हो धड़ से
तुम उसकी छातियां अलग कर देते हो
तुम उसकी जांघें अलग कर देते हो

तुम एकांत में करते हो आहार
आदमखोर! तुम इसे हिंसा नहीं मानते


आदमखोर उठा लेता है
छह साल की बच्ची
लहूलुहान कर देता है उसे

अपना लिंग पोंछता है
और घर पहुँच जाता है
मुंह हाथ धोता है और
खाना खाता है

रहता है बिल्कुल शरीफ आदमी की तरह
शरीफ आदमियों को भी लगता है
बिल्कुल शरीफ आदमी की तरह।


सवर्ण प्रौढ़ प्रतिष्ठित पुरुषों के बीच
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सवर्ण प्रौढ़ प्रतिष्ठित पुरुषों के बीच
मानवीय सार पर बात करना ऐसा ही है
जैसे मुजरा करना
इससे कहीं अच्छा है
जंगल में रहना पत्तियां खाना
और गिरगिटों से बातें करना।


अकलमंदी और मूर्खता
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स्त्रियों की मूर्खता को पहचानते हुए
पुरुषों की अक्लमंदी को भी पहचाना जा सकता है

इस बात को उलटी तरह भी कहा जा सकता है

पुरुषों की मूर्खताओं को पहचानते हुए
स्त्रियों की अक्लमंदी को भी पहचाना जा सकता है

वैसे इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि
स्त्रियों में भी मूर्खताएं होती हैं और पुरुषों में भी

सच तो ये है
कि मूर्खों में अक्लमंद
और अक्लमन्दों में मूर्ख छिपे रहते हैं
मनुष्यता ऐसी ही होती है

फिर भी अगर स्त्रियों की
अक्लमंदी पहचाननी है तो
पुरुषों की मूर्खताओं पर कैमरा फोकस करना होगा।

11 comments:

seema gupta said...

दीप मल्लिका दीपावली - आपके परिवारजनों, मित्रों, स्नेहीजनों व शुभ चिंतकों के लिये सुख, समृद्धि, शांति व धन-वैभव दायक हो॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ इसी कामना के साथ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ दीपावली एवं नव वर्ष की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं

फ़िरदौस ख़ान said...

बेहद मार्मिक रचना...
दीपावली की हार्दिक मंगल कामनाएं...

Manuj Mehta said...

bahut achhi rachna, marmik aur marmsparshi

शुभाम् करोति कल्याणं,
अरोग्यम धन: सम्पदा,
शत्रु बुद्धि विनाशाय,
दीपमज्योती नमोस्तुते,

शुभ दीपावली

admin said...

शुभा के बारे में जानना और उनकी कविताओं को पढना अच्छा लगा।
दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ।

Ek ziddi dhun said...

इस वक्त तो ब्लाग पर भी गुड़ीगुडी लेखन खूब हो रहा है। सेंसुअस भाषा का जाल बुना जाता है और उसमें रस लेने वाले आकर टिपिया देते हैं। आपका गुस्सा और ये कविताएं वाजिब हैं। एसी बातें पुरुषों को अखरती हैं।

Unknown said...

`रहता है बिल्कुल शरीफ आदमी की तरह
शरीफ आदमियों को भी लगता है
बिल्कुल शरीफ आदमी की तरह'..
शरीफ लोगों तुम्हें काफी बुरा लग रहा होगा..

Anonymous said...

थैंक्स दुबारा से क्या शानदार कविताएं खोज कर लाई हो वर्षा .

हिन्दुस्तानी एकेडेमी said...

अच्छी पोस्ट...।
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दीपावली की शुभकामनाएं।
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Ashok Pandey said...

वर्षा जी, शुभा जी की कविताएं आपके और शायद धीरेश जी के ब्‍लॉग पर भी पढ़ी थीं, इन्‍हें पढ़ना अच्‍छा लग रहा है..धन्‍यवाद।
****** परिजनों व सभी इष्ट-मित्रों समेत आपको प्रकाश पर्व दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं। मां लक्ष्‍मी से प्रार्थना होनी चाहिए कि हिन्‍दी पर भी कुछ कृपा करें.. इसकी गुलामी दूर हो.. यह स्‍वाधीन बने, सश‍क्‍त बने.. तब शायद हिन्‍दी चिट्ठे भी आय का माध्‍यम बन सकें.. :) ******

Vivek Gupta said...

दीपावली के इस शुभ अवसर पर आप और आपके परिवार को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.

betuki@bloger.com said...

दिल को छू लेने वाली यथार्थवादी रचनाएं। आपको दीपावली की शुभकामनाएं।