सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Tuesday, October 28, 2008

शुभ दीपावली!




परमार्थ में जीवन को ही मिटा दे,
दीप सा दधीचि दूसरा हुआ कहाँ?
वह तो जल पूरा गया फिर भी,
हर मन में उजाला हुआ कहाँ?
एक दीप प्रेम का जलाएं,
जो हर मन का कलुष मिटाए,
सूनी आँखों में फिर से ,
एक जीवन ज्योति जलाये,
आओ ऐसी एक नयी दीपावली मनाएं.

हमारे "हिन्दी ब्लॉग समूह" को सपरिवार दीपावली शत-शत मंगलमय हो!

6 comments:

श्यामल सुमन said...

मिटे अंधेरा जीवन का और मिटे चराग तले।
घर घर जगमग दीप जले।।

दीपावली की शुभकामनाएँ।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com

Anonymous said...

rekha aap ko diwali shubh ho

दिनेशराय द्विवेदी said...

दीपावली पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
दीवाली आप के और आप के परिवार के लिए सर्वांग समृद्धि लाए!

Udan Tashtari said...

दीपावली पर आप के और आप के परिवार के लिए

हार्दिक शुभकामनाएँ!

समीर लाल
http://udantashtari.blogspot.com/

Satish Saxena said...

कौन है यहाँ जो दर्द दूसरों का, जान ले ?
पत्थरों के मध्य छिपे नर्म दिल की थाह ले
आँख के आंसू नही बहते अकेले तक में अब
जानता हूँ दर्द यह, बस साथ मेरे जाएगा !

रचना गौड़ ’भारती’ said...

I am also shrivastava.bahut sundar rachana. badhaee