सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Monday, January 19, 2015

तुमने कहा था...


तुमने कहा था मां
बहुत बोलती हो तुम
चपर चपर
बहस करती हो.
हर बात पे
उठाती हो सवाल
पूछती हो क्यों.
टिक पाओगी ?
ससुराल में ??

तब से मां
बस तब से
चुप रहना सीख लिया मैने
प्रश्न चिह्न की जगह
विराम लगाना सीख लिया
हर उठते हुए सवाल पर.

नहीं बोली थी मैं कुछ भी
जब बहुत कम करके
आंका गया था
तुम्हारे गाढ़े खून-पसीने से एकत्र
दहेज की वस्तुओं का मोल

नहीं बोली थी मैं
तब भी कुछ भी
जब उलाहने में
ज़िक्र लाया गया मायके का
और उठी थी उंगलियां
तुम्हारी दी हुई सीख पर

पी गई थी मैं मां,
अंदर ही अंदर
तेरे और अपने
अपमान का घूंट
पर चुप रही थी मैं मां,
मैने तुम से
कुछ भी तो नहीं कहा था.

मुझे टिकना था
रहना था वहां
जहां भेजा था तूने
डोली में बिठा कर मुझे.

मैं तब भी नहीं बोली थी मां
जब हर सुख-दुख में
मेरा साथ देने की
सौगन्ध उठाने वाला
तुम्हारा दामाद
फूट फूट के रोया था
दूसरी बेटी के जन्म पर
और जी भर के कोसा था
उसने मुझे और
उस नन्ही सी जान को

पी गई थी मैं
आंसुओं के साथ साथ
खून के घूंट भी
पर चुप रही थी मैं
कुछ भी तो नहीं बोली थी

मुझे साबित करना था
कि तुम्हारी बेटी
टिक सकती है,
रह सकती है
हर तरह की परिस्थिति में.

नहीं उंगली उठवानी थी मुझे
नहीं खड़े करने थे सवाल
तुम्हारे दिये गए संस्कारों पर.

और बोझ नहीं बनना था
मुझे फिर से
जिसे बड़ी मुश्किल से उतार
सुकून का सांस
ले पाए थे तुम सब.

पर मां
अब मैं चुप नहीं रहूंगी.
अब मैं बोलूंगी.
नहीं मारूंगी मैं हरगिज़
अपने ही अंश को
नहीं सहूंगी मैं कदापि
भ्रूण-हत्या के दंश को.

और हां !
तुम्हारे पढ़ाए पाठ के साथ-साथ
मैं अपनी बेटियों को
एक और पाठ भी पढ़ाऊंगी.

चुप रहने के साथ-साथ
मैं उन्हें बोलना सिखाऊंगी..

हां मां ,
उन्हें अन्याय के विरुद्ध
बोलना सिखाऊंगी.

                  डॉ.पूनम गुप्त

40 comments:

Vaanbhatt said...

सशक्त रचना...बहुत खूब...

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 22-01-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1866 में दिया गया है
धन्यवाद

कविता रावत said...

सार्थक रचना ..

Dr.J.P.Tiwari said...

भावपूर्ण और अपनी बात कहने मे सर्वथा समर्थ संस्कार के साथ अधिकार को तर्कपूर्ण ढंग से कहने की सशक्त शैली .....प्रभावशाली..... वर्णन जो इंकार के लिए कहीं से अवकाश नहीं देता । मर्म पर करारा प्रहार बहुत दिनों बाद मिली इतनी सशक्त रचना बधाई स्वीकार करें

डॉ. पूनम गुप्त said...

बहुत बहुत धन्यवाद!

डॉ. पूनम गुप्त said...

बहुत बहुत धन्यवाद!

डॉ. पूनम गुप्त said...

बहुत बहुत धन्यवाद!

डॉ. पूनम गुप्त said...

बहुत बहुत धन्यवाद जी!

डॉ. पूनम गुप्त said...

बहुत बहुत धन्यवाद जी!

डॉ. पूनम गुप्त said...

आप सभी का हार्दिक धन्यवाद!

mapmystudy said...

Nice post.Thank you for taking the time to publish this information very useful! I’m still waiting for some interesting thoughts from your side in your next post thanks.
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Unknown said...

सार्थक रचना ..
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संजय भास्‍कर said...

सशक्त रचना

डॉ. पूनम गुप्त said...

आप सभी का हार्दिक धन्यवाद!

रचना दीक्षित said...

सार्थक प्रस्तुती
अच्छा लगा इस ब्लॉग पर आना

Mohinder56 said...


सार्थक सार गर्भित रचना... लिखते रहिये

Swati said...

अत्यंत भावविभोर करने वाली रचना !!

Unknown said...

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Unknown said...

बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति 👌

डॉ. पूनम गुप्त said...

Thanks to all

neelima garg said...

very impressive...

डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी said...

पर मां
अब मैं चुप नहीं रहूंगी.
अब मैं बोलूंगी.
नहीं मारूंगी मैं हरगिज़
अपने ही अंश को
नहीं सहूंगी मैं कदापि
भ्रूण-हत्या के दंश को.

बहुत अच्छा!

neelima garg said...

very impressive...

Unknown said...

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Dev said...

Bahuat sundar Kavita...

चुप रहना सीख लिया मैने
प्रश्न चिह्न की जगह
विराम लगाना सीख लिया
हर उठते हुए सवाल पर.

Dev Palmistry

Asha Joglekar said...

जरूरी है बोलना भी। अन्याय के विरुध्द् तो और भी।

Ms. Harpreet Dusanjh said...

This is one of the best poems I have come across in my life Dr. Poonam. You are blessed with a divine gift "penning down your feelings"....use it to the maximum.
Regards
Dr. Harpreet Raman Bahl

radha tiwari( radhegopal) said...

Very nice.

Unknown said...

Very heart touching poem thank you.

sapan dubey said...

बहुत शानदार, लेखन जारी रखिए

Shahjad Asif said...

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