ना जाने क्यूँ
आजकल कुछ लिख नहीं पाती
आजकल कुछ लिख नहीं पाती
विचार
दिमाग की दीवारो से टकरा कर
वापिस लौट आते है
दिमाग की दीवारो से टकरा कर
वापिस लौट आते है
आवाज़ें
वादियों की तरह
मन में गूंज के रह जाती है
वादियों की तरह
मन में गूंज के रह जाती है
ऐसा क्या परिवर्तन हुआ है
जो मेरे अंतर्मन को
अपनी भाषा बोलने नहीं दे रहा
जो मेरे अंतर्मन को
अपनी भाषा बोलने नहीं दे रहा
हर रात अपने ही विचारो के साथ
मैं एक संघर्ष करती हुँ
मैं एक संघर्ष करती हुँ
उन्हें पन्ने पे उतारने का संगर्ष
उन्हें विचारो से व्यक्तित्व बनाने का संघर्ष
उन्हें मृत से जीवित बनाने का संघर्ष
उन्हें विचारो से शब्द बनाने का संघर्ष
पर सत्य ये भी है की
यदि पन्नो पे न छप सके फिर भी
ये विचार कमज़ोर नहीं होते
व्यक्ति मर जाता है
परन्तु उसके विचार जीवित रहते है
शब्दों को परिभाषित
होने के लिए विचारों की आवश्यक्ता है
विचारों को नहीं
यदि पन्नो पे न छप सके फिर भी
ये विचार कमज़ोर नहीं होते
व्यक्ति मर जाता है
परन्तु उसके विचार जीवित रहते है
शब्दों को परिभाषित
होने के लिए विचारों की आवश्यक्ता है
विचारों को नहीं
13 comments:
विचार कभी नहीं मरते -जब विचारों की भीड़ उमड़ती है तो कभी-कभी ऐसा लगता है कि हम निष्क्रिय होगए हैं -लेकिन हमारे अंदर का कोई निरंतर (शायद अवचेतन)साक्षी बना रहता है ,हम जान पायें या नहीं.अंतर्मन में एक प्रक्रिया सतत चलती है -शोधन और संश्लेषण की.
अकर्मण्यता नहीं ,ऐसी अस्थाई विश्राम की स्थिति भी प्राकृतिक आवश्यकता के कारण ही .
bahut sundar
सच कहा है ... विचार ही हैं जो हमेशा जिन्दा रहते हैं ...
धन्यवाद!!
Vicharniya........sundar
Hmmm.. mann me utpann hue vichaar kaise bhi apni manzil tak to pahuch hi jate hai.. depending on the matching frequency.. bramhaand me gunjaymaan ho hi jate hain.. :)
सराहना के लिए धन्यवाद !!
मन की उहापोह को उभारती सुन्दर रचना
धन्यवाद मोहिन्दर जी
ati sunder....
Awesome Swati Ji. Pls visit my blog also.
http://www.krantigaurav.com/
sach kaha hai aapne apni kavita ke madhyam se
Post a Comment