सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Monday, September 22, 2014

विचार

ना जाने क्यूँ
आजकल कुछ लिख नहीं पाती

विचार
दिमाग की दीवारो से टकरा कर
वापिस लौट आते है

आवाज़ें
वादियों की तरह
मन में गूंज के रह जाती है

ऐसा क्या परिवर्तन हुआ है
जो मेरे अंतर्मन को
अपनी भाषा बोलने नहीं दे रहा
हर रात अपने ही विचारो के साथ
मैं एक संघर्ष करती हुँ

उन्हें पन्ने पे उतारने का संगर्ष
उन्हें विचारो से व्यक्तित्व बनाने का संघर्ष
उन्हें मृत से जीवित बनाने का संघर्ष
उन्हें विचारो से शब्द बनाने का संघर्ष

पर सत्य ये भी है की
यदि पन्नो पे न छप सके फिर भी
ये विचार कमज़ोर नहीं होते
व्यक्ति मर जाता है
परन्तु उसके विचार जीवित रहते है
शब्दों को परिभाषित
होने के लिए विचारों की आवश्यक्ता है
विचारों को नहीं
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13 comments:

प्रतिभा सक्सेना said...

विचार कभी नहीं मरते -जब विचारों की भीड़ उमड़ती है तो कभी-कभी ऐसा लगता है कि हम निष्क्रिय होगए हैं -लेकिन हमारे अंदर का कोई निरंतर (शायद अवचेतन)साक्षी बना रहता है ,हम जान पायें या नहीं.अंतर्मन में एक प्रक्रिया सतत चलती है -शोधन और संश्लेषण की.
अकर्मण्यता नहीं ,ऐसी अस्थाई विश्राम की स्थिति भी प्राकृतिक आवश्यकता के कारण ही .

Dr. Rajeev K. Upadhyay said...

bahut sundar

दिगम्बर नासवा said...

सच कहा है ... विचार ही हैं जो हमेशा जिन्दा रहते हैं ...

Swati said...

धन्यवाद!!

Anamikaghatak said...

Vicharniya........sundar

Nirmala Rajpurohit said...
This comment has been removed by the author.
Rashmi Swaroop said...

Hmmm.. mann me utpann hue vichaar kaise bhi apni manzil tak to pahuch hi jate hai.. depending on the matching frequency.. bramhaand me gunjaymaan ho hi jate hain.. :)

Swati said...

सराहना के लिए धन्यवाद !!

Mohinder56 said...


मन की उहापोह को उभारती सुन्दर रचना

Swati said...

धन्यवाद मोहिन्दर जी

neelima garg said...

ati sunder....

Kranti Gaurav said...

Awesome Swati Ji. Pls visit my blog also.

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Rohit rai said...

sach kaha hai aapne apni kavita ke madhyam se