शक्ति के उपासक हैं ये लोग
यहाँ स्कंदमाता की पूजा होती है
गणेश कार्तिक को भोग लगता है
और अशोक सुंदरी फुट फुट रोती है
चंदन नही, रक्त भरे हाथों से
देवी का शृंगार करते हैं
गर्भ की कन्याओं का जो
वंश के नाम संहार करते हैं
अचरज होता है क्यूँ शक्ति के नाम पर
नौ दिनो का उपवास होता है
कहाँ मिलेंगी कंजके लोगों को
जहाँ गर्भ उनका अंतिम निवास होता है
कभी मन्त्र से, कभी जाप से
नर तुमको छल रहा है
मत आओ इस धरती पर देवी
यहाँ तो चिरस्थायि
भद्रकाल चल रहा है
सुलोचना वर्मा
© 2008-13 सर्वाधिकार सुरक्षित!
यहाँ स्कंदमाता की पूजा होती है
गणेश कार्तिक को भोग लगता है
और अशोक सुंदरी फुट फुट रोती है
चंदन नही, रक्त भरे हाथों से
देवी का शृंगार करते हैं
गर्भ की कन्याओं का जो
वंश के नाम संहार करते हैं
अचरज होता है क्यूँ शक्ति के नाम पर
नौ दिनो का उपवास होता है
कहाँ मिलेंगी कंजके लोगों को
जहाँ गर्भ उनका अंतिम निवास होता है
कभी मन्त्र से, कभी जाप से
नर तुमको छल रहा है
मत आओ इस धरती पर देवी
यहाँ तो चिरस्थायि
भद्रकाल चल रहा है
सुलोचना वर्मा
© 2008-13 सर्वाधिकार सुरक्षित!
9 comments:
समसामयिक समस्या पे सटीक प्रश्न उठाया आपने |
मेरी नई रचना :- मेरी चाहत
बहुत बढ़िया ! सच्ची बात...
Aakrosh ki sashakt abhivyakti...!
खुबसूरत अभिव्यक्ति
नारे-शक्ति का उन्नयन करी यह ब्लॉग परिवर्तन की भावना का विकास किअरे !
नारी-उत्थान का सराहनीय प्रयास है !
Dhanywaad
man ko chhoo gayi apki kavita...utkrisht
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