सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Thursday, October 10, 2013

दुर्गा पूजा

 शक्ति के उपासक हैं ये लोग
यहाँ स्कंदमाता की पूजा होती है
गणेश कार्तिक को भोग लगता है
और अशोक सुंदरी फुट फुट रोती है

चंदन नही, रक्त भरे हाथों से
देवी का शृंगार करते हैं
गर्भ की कन्याओं का जो
वंश के नाम संहार करते हैं

अचरज होता है क्यूँ शक्ति के नाम पर
नौ दिनो का उपवास होता है
कहाँ मिलेंगी कंजके लोगों को
जहाँ गर्भ उनका अंतिम निवास होता है


कभी मन्त्र से, कभी जाप से
नर तुमको छल रहा है
मत आओ इस धरती पर देवी 
यहाँ तो चिरस्थायि
भद्रकाल चल रहा है


सुलोचना वर्मा


© 2008-13 सर्वाधिकार सुरक्षित!

9 comments:

Unknown said...

समसामयिक समस्या पे सटीक प्रश्न उठाया आपने |

मेरी नई रचना :- मेरी चाहत

डॉ. पूनम गुप्त said...

बहुत बढ़िया ! सच्ची बात...

innovative_INDIAN said...

Aakrosh ki sashakt abhivyakti...!

Unknown said...

खुबसूरत अभिव्यक्ति

देवदत्त प्रसून said...

नारे-शक्ति का उन्नयन करी यह ब्लॉग परिवर्तन की भावना का विकास किअरे !

देवदत्त प्रसून said...
This comment has been removed by the author.
देवदत्त प्रसून said...

नारी-उत्थान का सराहनीय प्रयास है !

SulochanaVerma said...

Dhanywaad

Anamikaghatak said...

man ko chhoo gayi apki kavita...utkrisht