तब प्रभु ने औजार छोड़कर तूलिका उठाई.
सेवक ने तब प्रभु से पूछा ऐसे क्या रचोगे,
औजारों का काम आप इससे कैसे करोगे?
बोले प्रभु मुझको है बनानी सृष्टि में एक नारी,
कोमलता के भाव बना न सकती कोई आरी.
पत्थर पर जब मैं हथोडी से वार कई करूंगा,
ऐसे दिल में प्यार के सुन्दर भाव कैसे भरूँगा?
क्षमा करुणा भाव हैं ऐसे उसमे तभी ये आयेंगे,
जब रंगों के संग सिमट कर उसके मन बस जायेंगे.
इसीलिए अपने हाथों में तूलिका को थामा,
पहनाने दे अब मेरी योजना को अमली जामा.
शालिनी कौशिक
6 comments:
बहुत सुन्दर...
man ko chhoo gayi aapki kavita .aabhar
सरल सहज भाव से कितने कोमल भाव दिखा दिए..भावभीनी रचना..
बहुत सुन्दर रचना.........
कोमल भावों को बहुत कोमलता से पिरोया है........
ati sundar kavita.
srasti ki anupm rachna hai nari,mamta prem shrdha ki nidhi hai nari,isko kahey bechara jo bhi, un sb pr bhari hai nari.
ek alhada soch liye hue kavita....utkrisht rachana
Post a Comment