सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Thursday, September 2, 2010

क्योकि मैने निष्ठा से सिर्फ तुमको चाहा

आये थे कृष्ण एक बार वापस विरंदावन
कहा था उन्होने राधा से
" तुम्हे ही चाहता हूँ मै प्रिये
लौटा हूँ
फिर एक बार पाने के लिये प्यार तुम्हारा "
बोली राधा
" मेरा प्यार तो सदा ही है तुम्हारा
पर क्या तुम रुक्मणी को छोड़ कर आये हों "
बोले कृष्ण " रुक्मणी पत्नी है और राधा तुम प्यार हों मेरा "
" अब वापस तो नहीं जाओगे " राधा का प्रश्न था
" नहीं वापस तो जाना है , संसार का कर्म निभाना है"
बोली फिर राधा " जाओ लॉट जाओ
रुक्मणी को छोड़ कर आते तो मेरा प्यार पाते
इस युग मे तो क्या किसी भी युग मे मुझे तक
वापस आओगे मेरा प्यार पाओगे पर
जैसे मै तुम्हारी हूँ
तुमको भी केवल मेरा बन कर रहना होगा
मुझे प्यार करना और रुक्मणी से विवाह करना
ये पहली गलती थी और
फिर वापस आकर मेरे प्यार की कामना
दूसरी ग़लती है तुम्हारी "
वापस चले गए कृषण
और जाकर अपनी इस यात्रा का विवरण
इतिहास से ही मिटा दिया
क्योकि उन्हें तो भगवान बनना था
मिटा दिया नारी की जागरुकता को
और पुरुष कि कायरता को
उन्होने इतिहास के पन्नो से
क्योकि इतिहास तो हमेशा पुरुष ही लिखते है
फिर एक दिन
फिर मिले वह राधा से
कई युगो बाद
एक मंदिर मे
कहा राधा ने
देखो आज मै भी वहीं स्थापित हूँ
जहां तुम स्थापित हो
पर मेरा नाम तुम्हारे नाम से पहले
लेते है लोग इस युग के
क्योकी उस युग मे मै सही थी
प्रेम एक वक़्त मे केवल एक से करना
हों सकता है फिर दुसरे युग मे
तुम पराई स्त्री के साथ नहीं
रुक्मणी के साथ पूजे जाओ
तुमने जो कुछ पाया
मुझे भी वही मिला
अलग अलग रास्तो से
एक ही जगह पहुंच गए है हम
पर है हम " राधा कृष्ण "
क्योकि मैने निष्ठा से
सिर्फ तुमको चाहा
और
अपना सम्मान मैने

स्वयम अर्जित किया

© 2008-10 सर्वाधिकार सुरक्षित!

9 comments:

sonal said...

nice poem

राजेश उत्‍साही said...

प्रेम की शाश्‍वत है। इसलिए तमाम बातों के बावजूद हम राधा को श्‍याम के साथ ही याद करते हैं।

Anamikaghatak said...

sundar prastuti

शोभना चौरे said...

क्योकि उन्हें तो भगवान बनना था
मिटा दिया नारी की जागरुकता को
और पुरुष कि कायरता को
उन्होने इतिहास के पन्नो से
क्योकि इतिहास तो हमेशा पुरुष ही लिखते है
ati sundar
yahi to prem ka saty hai .
radha ne to kbse rah dikha di khoob pahchana .bemisal

k.joglekar said...

bahut sunder kavita. badhai.

k.joglekar said...

मुझे प्यार करना और रुक्मणी से विवाह करना
ये पहली गलती थी और
फिर वापस आकर मेरे प्यार की कामना
दूसरी ग़लती है तुम्हारी "
वापस चले गए कृषण
और जाकर अपनी इस यात्रा का विवरण
इतिहास से ही मिटा दिया
क्योकि उन्हें तो भगवान बनना था
Ek bahut Jaroori si kavita. badhai

पूनम श्रीवास्तव said...

ekbahut hi pyari si anubhuti karati hui aapki yah rachna mujhe behad pasand aai .bas uske liye sahi shabd dimaag me nahi aa raha ki kya likhun.
bahuthi prabhav-shali prastuti.
poonam

neelima garg said...

different but nice views...

santosh sharma said...

bahut hi sunder kavita ha.krishan bhi aakhir purush hi the, to radha ko kese samajh pate.