वे उसकी मौत पर
मातम मना रहे थे,
चिल्ला-चिल्ला कर
सब रो रहे थे.
उनमें वे लोग भी थे
जो जीते जी उसका
जीवन नरक बनाये रहे
औ' देते रहे रोज नई मौत.
आज उसके मुर्दे को
सजा रहे हैं,
साथ ही आंसुओं से
नहला रहे हैं.
दूर उसकी आत्मा खड़ी
अट्टहास कर रही है -
वाह रे दुनिया वालो,
जिन्दा रहते जब
हजार मौत मरती रही
तब कहाँ थे?
पहली बार मैं तब मरी
जब दहेज़ के लिए
मेरे पिता को कोसा था तुमने
गालियों से नवाजा था मेरी माँ को,
दूसरी बार उस वक्त मरी
जब बेटी को जन्म था मैंने,
और फिर
बेटी के होने के ताने ने
बार बार मारा मुझे.
तुम्हारी बेटे की चाह ने
कई बार मारा मुझे,
आखिर मेरी बेटियों के साथ
घर से निकला तुमने.
मेरा सब्र टूट चुका था,
बेटियों को सुलाकर मंदिर में
जल समाधि ले ली मैंने
फिर भी नहीं छोड़ा ,
मेरी लाश भी ले आये.
अब दुनियाँ की नज़रों में
महान बन रहे हो,
फूलों की माला
सजीली साड़ी से मुँह ढक कर
चेहरा छुपा रहे हो.
मेरी इस पूरी मौत पर
दुनियाँ को तमाशा दिखा रहे हो.