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तुम किसी को कुछ भी कहो
किसी को डाँटो, प्यार करो
पर मैं कुछ न बोलूँ
मुँह न खोलूँ
और बोलने से पहले
स्वयं को तोलूँ
फिर कैसे जीऊँ !
समाज की असंगतियाँ
और विसंगतियाँ
कब होंगी समाप्त
कब मिलेगा समान रूप से
जीने का अधिकार,
रेत होता अस्तित्व
कब लेगा सुंदर आकार
किसी साकार कलाकृति का !
इसी आशा में, इसी प्रत्याशा में
जी रही है आज की नारी
कि कोई तो कल आएगा
जो देगा ठंडक मन को,
काँटों में फूल खिलाएगा
देगा हिम्मत तन-मन को,
खुशियों से महकाएगा
जीवन को !
जागेगी तन में आस,
जीने की प्यास
और जागेगा
मन में विश्वास !
पूरा है भरोसा
और पूरी है आस्था
कि वह अनोखा एक दिन
अवश्य आएगा !
डॉ. मीना अग्रवाल
सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता
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4 comments:
जो देगा ठंडक मन को,
काँटों में फूल खिलाएगा ...sundar..
कब मिलेगा समान रूप से
जीने का अधिकार,
रेत होता अस्तित्व
बहुत सुन्दर... और भावपूर्ण
सुन्दर भाव्।
"और जागेगा
मन में विश्वास !
पूरा है भरोसा
और पूरी है आस्था
कि वह अनोखा एक दिन
अवश्य आएगा !"
ji jarur aana chahiye!bahut sudar bhaav yaha prastut kiye...
shubhkaamnaaye swikaar kare...
kunwar ji,
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