सदियों से
तैयार की जाती रही हैं
एक फौज
औरतो की जो चलती रहे
बिना प्रश्न किये , बिना मुंह खोले
करती रहे जो शादी जनति रहे जो बच्चे
जिसके सुख की परिभाषा हो
पति और पुत्र के सुख की कामना
और
जो लड़ती रहे एक दूसरे से
बिना ये जाने की वो
एक चाल मे फंस गयी हैं
जहाँ पूरक वो कहलाती हैं
पर पूरक शब्द का
अर्थ पूछने का अधिकार
भी उसका नहीं होता हैं
तैयार की जा रही हैं
एक फौज औरतो की
जिसकी संवेदना मर गयी हैं
उसके अपने लिये
क्युकी उस को कहा जाता हें
और जाता रहेगा
की औरत का सुख
पति बच्चो और घर से ही होता हैं
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता
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7 comments:
adbhut lekhan..........satya ko aaina dikha diya aapne.........ek kadvi sachchayi hai aur is chakravyuh mein har aurat fansi huyi hai .........use khud is ghere ko todna hoga tabhi apna astitva jaan payegi aur khud ko pahchaan de payegi.
bilkul sahi likha, shayad yahi paribhasha isa samaj ne taiyar kar rakhi hai. lekin aba jab vah svayam ko pahachan kar apane prati jaagruk ho rahi hai, to hamen ashanvit hona chahie.
मैंने अपने जीवन में आजतक जितनी अबलायें देखीं हैं,उतनी ही सबलायें भी...कहीं अबला सी दिखने वाली नारियों को भी घर जलाते देखा है, तो कहीं किसी अबला सी दिखने वाली को भी घर जोड़ते और बसाते देखा है और कहीं किसी सबला को भी जलाये जाते देखा है.....
मुझे तो समय बहुत तेजी से बदलते हुए दीख रहा है,जो बहुत हद तक आशाजनक ही है...
औरत के इस सुख की परिभाषा पुरुष ने ही तो बनाई है ।
शरद कोकास "पुरातत्ववेत्ता " http://sharadkokas.blogspot.com
Ab drishy badal rahaa hai
achchhee kavitaa
सत्य कहा - "पूरक शब्द का
अर्थ पूछने का अधिकार
भी उसका नहीं होता हैं"
बेहतरीन रचना । आभार ।
very true.....
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