सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Monday, April 27, 2009

युवामन - वृद्धतन

किसी अज्ञात भय से / मेरा बुढापा नहीं डरता हैं
दुसरो के सुख का संकल्प लिये / आज भी दौड़ता फिरता हैं
शरीर भले ही आयु से बंध जाए
मन तो सदैव स्वतंत्र चलता हैं ।
मै नहीं मानती मेरा बचपन खो गया कहीं
वह तो आज भी / ममता की झोली में
अबोध बच्चो की तुतली बोली में
उत्सुक चंचल आँखों में
झांकता हैं , स्वर्ग सुख मांगता हैं ।
मै नहीं मानती मेरी युवावस्था बीत गयी
वह तो आज भी युवा मित्रो के साहस मे
चहकती हैं , फूलो सी महकती हैं
मेरा वृद्ध तन युवा हो जाता हैं
जब किसी युवा साथी का हाथ
हाथ मे मदद को आता हैं ।
बुढापा कोई पड़ाव नहीं
प्रक्रिया हैं आगे बढ़ने की
जो नहीं कर सके अब तक
उसे पूरा करने की ।
भूत - भविष्य की चिंता छोडो
केवल वर्तमान से नाता जोडो ।
यही सच हैं बाकी सब बेमानी हैं ।
बुढापा अभिशाप नहीं
इश्वर की मेहरबानी हैं

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Friday, April 24, 2009

घूँघट का पट

क्यूँ सखी
इतना अन्तर
तुझ में और मुझ में
मैं देख सकती हूँ
तारों के पार का जहाँ
बोल सकती हूँ
अपने आज़ादी के शब्द
सुन सकती हूँ
अपना मनचाहा स्वर
शायद मेरे इन्द्रिय
जाग उठे है समय के साथ

तू क्यूँ ग़लत परम्पराओं का
लंबा सा पल्लो
ओढ़ के बैठी है अब तक
जहाँ से तुझे सिर्फ़
अपने पैरों के नाखून ही नज़र आते है
एक कदम भी नही चल सकती तू
दूसरो के सहारे बिन
तेरी मुस्कान सिल जाती है जिस में
खोल दे वो घूँघट का पट सखी
मेरे संग तुझे बहुत दूर चलना है
नज़रों से पलकों का परदा हटा
तुझे नीला आसमान देखना है











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Wednesday, April 8, 2009

जीने का हक है मुझे

जाने क्यों

बगावत कर
तन कर खड़ी हो गई
वर्जनाओं और प्रतिबंधों की
जंजीरों को तोड़कर
नए स्वरूप में
जंग का ऐलान कर.
माँ लगी समझाने
वे बड़े हैं,
पिता हैं,
भाई हैं ,
उन्हें हक है
कि तुझे अपने अनुसार
जीवन जीने देने का।
नहीं, नहीं, नहीं..........
बचपन से प्रतिबंधों की
जंजीरों में जकड़ी
औ' अपनी बेबसी पर
रोते हुए देखा है तुम्हें
घुट-घुटकर जहर
पीते हुए देखा है तुम्हें
तुम्हारी छाया में
पिसती मैं भी रही
लाल-लाल आँखों का डर
हर पल सहमाये रहा
पर अब क्यों?
नहीं उनका रिश्ता
मैं नहीं ओढ़ सकती
जीवन भर के लिए
अपने को
दूसरों की मर्जी पर
नहीं छोड़ सकती।
जिन्दगी मेरी है,
उसे जीने का हक है मुझे
चाहे झूठी मान्यताओं
औ' प्रथाओं से लडूं
जीवन अपने लिए
जीना है तो क्यों न जिऊँ
पिता के साए से डरकर
तेरी गोद में
छुपी रही
अब नए जीवन में
उनका साया नहीं,
उन जैसे किसी भी पुरूष की
छाया भी नहीं
मैं पति से डरकर
जीना नहीं चाहती
अब परमेश्वर की मिथ्या
परिकल्पना को
तोड़कर
एक अच्छे साथी
तलाश ख़ुद ही करूंगी
चाहे जब भी मिले
मंजिल
उसके मिलने तक
अपनी लडाई
ख़ुद ही लडूंगी
मुझे जीने का हक है
मुझे जीने का हक है
और मैं उसको
अपने लिए ही जिऊंगी.

पता नहीं क्यों