सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Monday, September 22, 2014

विचार

ना जाने क्यूँ
आजकल कुछ लिख नहीं पाती

विचार
दिमाग की दीवारो से टकरा कर
वापिस लौट आते है

आवाज़ें
वादियों की तरह
मन में गूंज के रह जाती है

ऐसा क्या परिवर्तन हुआ है
जो मेरे अंतर्मन को
अपनी भाषा बोलने नहीं दे रहा
हर रात अपने ही विचारो के साथ
मैं एक संघर्ष करती हुँ

उन्हें पन्ने पे उतारने का संगर्ष
उन्हें विचारो से व्यक्तित्व बनाने का संघर्ष
उन्हें मृत से जीवित बनाने का संघर्ष
उन्हें विचारो से शब्द बनाने का संघर्ष

पर सत्य ये भी है की
यदि पन्नो पे न छप सके फिर भी
ये विचार कमज़ोर नहीं होते
व्यक्ति मर जाता है
परन्तु उसके विचार जीवित रहते है
शब्दों को परिभाषित
होने के लिए विचारों की आवश्यक्ता है
विचारों को नहीं
signature

© 2008-13 सर्वाधिकार सुरक्षित!