सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Thursday, July 10, 2014

विदाई

 
दिवाली के बाद 
जब आयी सहालग की बारी 
हो गई डोली विदा घर से 
और चले गए बाराती 

खड़ा रहा पिता 
दुआरे पर बहुत देर 
मन सा भारी कुछ लिए


देखती रही माँ एकटक 
गुलाबी कुलिया चुकिया 
जो भरा था अब भी 
खाली-खाली से घर में 


----सुलोचना वर्मा----

© 2008-13 सर्वाधिकार सुरक्षित!

2 comments:

Mohinder56 said...

कम शब्दोँ मेँ भी गहरी बात कह दी आपने अपनी रचना के माध्यम से... लिखते रहिये

Mohinder56 said...

कम शब्दोँ मेँ भी गहरी बात कह दी आपने अपनी रचना के माध्यम से... लिखते रहिये