जब आयी सहालग की बारी
हो गई डोली विदा घर से
और चले गए बाराती
खड़ा रहा पिता
दुआरे पर बहुत देर
मन सा भारी कुछ लिए
देखती रही माँ एकटक
गुलाबी कुलिया चुकिया
जो भरा था अब भी
खाली-खाली से घर में
----सुलोचना वर्मा----
© 2008-13 सर्वाधिकार सुरक्षित!
" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की और लिखा अपने मन मे बसी स्वतंत्रता को "
2 comments:
कम शब्दोँ मेँ भी गहरी बात कह दी आपने अपनी रचना के माध्यम से... लिखते रहिये
कम शब्दोँ मेँ भी गहरी बात कह दी आपने अपनी रचना के माध्यम से... लिखते रहिये
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