सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Thursday, July 10, 2014

ढोंगी

 

इस समाज के कुछ लोग 
मानते हैं उसे भगवान्
या फिर कोई अवतार 
और वह गढ़ता है कुछ कहानियाँ 
जिससे बना रहे यह भ्रम लोगों का 

नहीं जानते लोग इस समाज के 
कि जब वह बांच रहा होता है ज्ञान 
महिला उत्पीड़न के विरुद्ध किसी सभा में 
उसकी पत्नी कर रही होती है नाकामयाब कोशिश 
अपने बदन के खरोंचो को छुपाने की 
डाल रही होती है आँखों में गुलाब जल 
कि कम हो रोने के बाद आँखों का सूजन 
और वह बनी रहे सफल अभिनेत्री साल दर साल 


भले ही चिल्लाता हो वह अपने बच्चे की जिद पर
और नहीं संभाल पाता हो उसकी बचकानी आदतें 
या कर देता हो उसकी कुछ मांगे पूरी 
गैर जिम्मेदाराना तरीके से, छुड़ाने को पीछा 
पर कहाँ मानेंगे ये सब उस बस्ती के लोग 
जहाँ वह पिलाता है हर पोलियो रविवार को 
गरीब छोटे बच्चों को दो बूँद जिंदगी के 
धूप में रहकर खड़ा समाज सेवा के नाम


करती है अचरज उसके घर की कामवाली 
कि साहेब धमका आते हैं हर बार उसके पति को 
जब भी वह उठाता है हाथ उसपर 
और देती है दुआएं मालकिन को सुहागिन बने रहने की 
सहम जाते हैं पुलिसकर्मी भी देखकर 
उसके खादी के कुरते को 
और लगाते हैं जयकारा साहेब के इस महान कृत्य पर 


घर के सामने पार्क में खेलते सभी बच्चे हैं उसके दोस्त 
और गली के हर कुत्ते ने खाया है उसके हाथ से खाना 
मुहल्ले के सभी बुजुर्गों को झुक कर करता है प्रणाम 
मदद के लिए सबसे पहले लोग उसे करते हैं याद 


डाल आई है आज उसकी पत्नी 
तलाक की एक तरफा अर्जी अदालत में 
और सोच रही है कौन सी सूचना उसे मिलेगी पहले 
एक झूठे रिश्ते से उसके निजात पाने की 
या सार्वजनिक सेवा व सामुदायिक नेतृत्व का मैग्सेसे पुरस्कार 
उस ढोंगी के नाम होने की !!!


सुलोचना वर्मा
© 2008-13 सर्वाधिकार सुरक्षित!

विदाई

 
दिवाली के बाद 
जब आयी सहालग की बारी 
हो गई डोली विदा घर से 
और चले गए बाराती 

खड़ा रहा पिता 
दुआरे पर बहुत देर 
मन सा भारी कुछ लिए


देखती रही माँ एकटक 
गुलाबी कुलिया चुकिया 
जो भरा था अब भी 
खाली-खाली से घर में 


----सुलोचना वर्मा----

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