मानते हैं उसे भगवान्
या फिर कोई अवतार
और वह गढ़ता है कुछ कहानियाँ
जिससे बना रहे यह भ्रम लोगों का
नहीं जानते लोग इस समाज के
कि जब वह बांच रहा होता है ज्ञान
महिला उत्पीड़न के विरुद्ध किसी सभा में
उसकी पत्नी कर रही होती है नाकामयाब कोशिश
अपने बदन के खरोंचो को छुपाने की
डाल रही होती है आँखों में गुलाब जल
कि कम हो रोने के बाद आँखों का सूजन
और वह बनी रहे सफल अभिनेत्री साल दर साल
भले ही चिल्लाता हो वह अपने बच्चे की जिद पर
और नहीं संभाल पाता हो उसकी बचकानी आदतें
या कर देता हो उसकी कुछ मांगे पूरी
गैर जिम्मेदाराना तरीके से, छुड़ाने को पीछा
पर कहाँ मानेंगे ये सब उस बस्ती के लोग
जहाँ वह पिलाता है हर पोलियो रविवार को
गरीब छोटे बच्चों को दो बूँद जिंदगी के
धूप में रहकर खड़ा समाज सेवा के नाम
करती है अचरज उसके घर की कामवाली
कि साहेब धमका आते हैं हर बार उसके पति को
जब भी वह उठाता है हाथ उसपर
और देती है दुआएं मालकिन को सुहागिन बने रहने की
सहम जाते हैं पुलिसकर्मी भी देखकर
उसके खादी के कुरते को
और लगाते हैं जयकारा साहेब के इस महान कृत्य पर
घर के सामने पार्क में खेलते सभी बच्चे हैं उसके दोस्त
और गली के हर कुत्ते ने खाया है उसके हाथ से खाना
मुहल्ले के सभी बुजुर्गों को झुक कर करता है प्रणाम
मदद के लिए सबसे पहले लोग उसे करते हैं याद
डाल आई है आज उसकी पत्नी
तलाक की एक तरफा अर्जी अदालत में
और सोच रही है कौन सी सूचना उसे मिलेगी पहले
एक झूठे रिश्ते से उसके निजात पाने की
या सार्वजनिक सेवा व सामुदायिक नेतृत्व का मैग्सेसे पुरस्कार
उस ढोंगी के नाम होने की !!!
सुलोचना वर्मा
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