क्यूँ पुतले को फूँककर
खुशी मनाई जाए
क्यूँ एक रावण के अंत का
जश्न मनाया जाए
कितने ही रावण विचर रहे
यहाँ, वहाँ, और उस तरफ
क्यूँ ना उन्हे मुखौटों से पहले
बाहर लाया जाए
इस साल दशहरे में नयी
रस्म निभाई जाए
राम जैसे कई धनुर्धरो की
सभा बुलाई जाए
हर रावण को पंक्तिबद्ध कर
सज़ा सुनाई जाए
अंत पाप का करने को उनमे
आग लगाई जाए
हर घर में नई आशा का
दीप जलाया जाए
अपहरण को इस धरती से
फिर भुलाया जाए
किसी वैदेही को कहीं अब
ना रुलाया जाए
गर्भ की देवियों को भी
बस खिलखिलाया जाएसुलोचना वर्मा
खुशी मनाई जाए
क्यूँ एक रावण के अंत का
जश्न मनाया जाए
कितने ही रावण विचर रहे
यहाँ, वहाँ, और उस तरफ
क्यूँ ना उन्हे मुखौटों से पहले
बाहर लाया जाए
इस साल दशहरे में नयी
रस्म निभाई जाए
राम जैसे कई धनुर्धरो की
सभा बुलाई जाए
हर रावण को पंक्तिबद्ध कर
सज़ा सुनाई जाए
अंत पाप का करने को उनमे
आग लगाई जाए
हर घर में नई आशा का
दीप जलाया जाए
अपहरण को इस धरती से
फिर भुलाया जाए
किसी वैदेही को कहीं अब
ना रुलाया जाए
गर्भ की देवियों को भी
बस खिलखिलाया जाएसुलोचना वर्मा
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1 comment:
बहुत अच्छी रचना है बहुत बधाई और बहुत शुभकामनाऐ 💐.🖒
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