ये दुनिया है लगती अभिमानी और मतलबी सी
लेकिन उसी में रहते मुझे प्यार करने वाले हैं
इसीलिये मेरी ज़ुबां पर पड़ गये ताले हैं
मेरी अकल है घुटनों से ज़्यादा नहीं जिनके लिये
इन्हीं के साथ रहते मुझे पलकों पर बिठाने वाले हैं
इसीलिये मेरी ज़ुबां पर पड़ गये ताले हैं
हर नज़र से जहाँ खतरे का अहसास होता है
इन्हीं के बीच रहते मेरे रखवाले हैं
इसीलिये मेरी ज़ुबां पर पड़ गये ताले हैं
दिलकशी है जिनके लिये सजाने की एक चीज़ महज़
इन्हीं के बीच कहीं जिस्म से पहले रूह देखने वाले हैं
इसीलिये मेरी ज़ुबां पर पड़ गये ताले हैं
दिल पाता है अपमान और ठोकरें ही जहाँ
यहीं रहते मुझे हर हाल में अपनाने वाले हैं
इसीलिये मेरी ज़ुबां पर पड़ गये ताले हैं
मेरी बहनों को सताने वाले हैं
पर मेरी तो ज़ुबाँ पर पड़ गये ताले हैं
इसी दुनिया में रहते हुए, बोलते इसी के खिलाफ़
मेरी ज़ुबां पर पड़ते छाले हैं
इसीलिये मेरी ज़ुबां पर पड़ गये ताले हैं
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10 comments:
इन्हीं मेरे बहुत अपनों में मिल गये
मेरी बहनों को सताने वाले हैं
पर मेरी तो ज़ुबाँ पर पड़ गये ताले हैं
whah in panktiyon ne sab keh diyaa
kehaa sae itna sach samet laaii ho ??
awesome creation yar .........superb
सीधे सादे लफ्जों में प्रभावी रचना...
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दूसरी धरती पर रहने चलेंगे?
उन्मुक्त चला जाता है ज्ञान पथिक कोई..
इस रचना की संवेदना और शिल्पगत सौंदर्य मन को भाव विह्वल कर गए हैं।
इस रचना की संवेदना और शिल्पगत सौंदर्य मन को भाव विह्वल कर गए हैं।
bahut khoob.. gaagar me saagar bhar diya.. ~Parwati Verma.
Shabdo aur bhavo ka adbhut sangam
आपको मेरी तरफ से नवरात्री की ढेरों शुभकामनाएं.. माता सबों को खुश और आबाद रखे..
जय माता दी..
इन्हीं मेरे बहुत अपनों में मिल गये
मेरी बहनों को सताने वाले हैं
पर मेरी तो ज़ुबाँ पर पड़ गये ताले हैं
इसी दुनिया में रहते हुए, बोलते इसी के खिलाफ़
मेरी ज़ुबां पर पड़ते छाले हैं
इसीलिये मेरी ज़ुबां पर पड़ गये ताले हैं
कितनी खूबसूरती से नारी की विवशता को आपने कविता में ढाला है ।
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