सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Wednesday, June 29, 2011

सृष्टि में एक नारी,





धरती पर जीवन रचने की भावना जब आई 
तब प्रभु ने औजार छोड़कर तूलिका उठाई.
सेवक ने तब प्रभु से पूछा ऐसे क्या रचोगे,
औजारों का काम आप इससे कैसे करोगे?
बोले प्रभु मुझको है बनानी सृष्टि में एक नारी,
कोमलता के भाव बना न सकती कोई आरी.
पत्थर पर जब मैं हथोडी से वार कई करूंगा,
ऐसे दिल में प्यार के सुन्दर भाव कैसे भरूँगा?
क्षमा करुणा भाव हैं ऐसे उसमे तभी ये आयेंगे,
जब रंगों के संग सिमट कर उसके मन बस जायेंगे.
इसीलिए अपने हाथों में तूलिका को थामा,
पहनाने दे अब मेरी योजना को अमली जामा. 
            शालिनी कौशिक 

Saturday, June 4, 2011

बलात्कार के बाद का बलात्कार .कविता केसर क्यारी ....उषा राठौड़


केसर क्यारी ....उषा राठौड की कविता

बलात्कार के बाद का बलात्कार

मेरी एक नन्ही सी नादानी की इतनी बड़ी सजा ?
डग भरना सिख रही थी,
भटक कर रख दिया था वो कदम
बचपन के आँगन से बाहर ...
जवानी तक तो मै पहुंची भी नहीं थी कि
तुमने झपट्टा मार लिया उस भूखे गिद्ध की मानिंद
नोच लिए मेरे होंसलों के पंख
मरे सीने का तो मांस भी भरा नहीं था कि
तुमको मांसाहारी समझ के छोड़ दूं
टुकड़ों मे काट दिया है तुमने मेरी जिंदगी को
अब ना समेट पाऊँगी
अपनी नन्ही हथेलियों से
मेरे मुंह पर रख के हाथ जितना जोर से दबाया था
काश एक हाथ मेरे गले पे होता तुम्हारा
तो ये अनगिनित निगाहे यूं ना करती आज मेरा
बलात्कार के बाद का बलात्कार .



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