यदि नारी हो
तो क्या?
निर्बल मत बनो,
याचना के लिए
कर मत उठाओ,
कर्म कर उन्हें
सार्थक बनाओ ।
कर्म कभी होता निष्फल नहीं,
कम कभी अधिक भी देता है,
जन्म लेने की यही सार्थक दिशा होगी
ममता का जो सागर
ईश्वर ने दिया है
सिक्त कर प्रेम से
खुशी कुछ चेहरों पर लाओ
कभी इन हाथों से
उठाकर सीने से लगाओ
कभी इन हाथों से
आंसू किसी के सुखाओ
दीप एक आशा का
कर्म कर सबमें जगाओ
ज्योति उनके भी
मन में जलाकर
नई दिशा सबको दिखाओ
सोचो एक दीप जलाकर
प्रकाश कितनों को देता है
स्वयं को मिटा कर
रास्ता दिखा जाता है
हमसे सार्थक वही,
मनुज बनकर हम भी
क्यों न सार्थक हों।
सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता
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6 comments:
मनुज बनकर हम भी
क्यों न सार्थक हों।
BAHUT SAHII AUR SUNDER
सोचो एक दीप जलाकर
प्रकाश कितनों को देता है
स्वयं को मिटा कर
बहुत सुन्दर!
निर्बल मत बनो,
याचना के लिए
कर मत उठाओ,
कर्म कर उन्हें
सार्थक बनाओ ।
" yes, very well said, impressive words"
Regards
सोचो एक दीप जलाकर
प्रकाश कितनों को देता है
स्वयं को मिटा कर
NICE LINES.............
सोचो एक दीप जलाकर
प्रकाश कितनों को देता है
स्वयं को मिटा कर
रास्ता दिखा जाता है
^ naari ka yehi to astitva hai... alag alag roop mai unka yehi dharm hai
bahut hi sudndar rachna
Aaj pahli baar aapke blog par aaya hoon , pad kar bahut accha laga.
bahut bahut badhai .
main bhi poems likhta hoon , kabhi mere blog par bhi aayiye.
my Blog : http://poemsofvijay.blogspot.com
regards
vijay
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