जात-पात न धर्म देखा, बस देखा इंसान औ कर बैठी प्यार
छुप के आँहे भर न सकी, खुले आम कर लिया स्वीकार
हाय! कितना जघन्य अपराध! माँ-बाप पर हुआ वज्रपात
नाम डुबो दिया, कुलच्छिनी ने भुला दिए सारे संस्कार
कुल कलंकिनी, कुल घातिनी क्या-क्या न उसे कह दिया
फिर भी झुकी न मोहब्बत तो खुद क़त्ल उसका कर दिया
खुद को देश के नियम-कानूनों से भी बड़ा समझने वालों
प्रतिष्ठा की खातिर, बेटियों की निर्मम हत्या करने वालों
इज्ज़त और संस्कार की भाषा सिखा देना फिर कभी
पहले तुम स्वयं को इंसानियत का पाठ तो पढ़ा लो
हाय! ये कैसा संस्कार जो प्यार से तार-तार हो जाता है?
कैसी ये प्रतिष्ठा जिसमें हत्या से चार चाँद लग जाता है?
छुप के आँहे भर न सकी, खुले आम कर लिया स्वीकार
हाय! कितना जघन्य अपराध! माँ-बाप पर हुआ वज्रपात
नाम डुबो दिया, कुलच्छिनी ने भुला दिए सारे संस्कार
कुल कलंकिनी, कुल घातिनी क्या-क्या न उसे कह दिया
फिर भी झुकी न मोहब्बत तो खुद क़त्ल उसका कर दिया
खुद को देश के नियम-कानूनों से भी बड़ा समझने वालों
प्रतिष्ठा की खातिर, बेटियों की निर्मम हत्या करने वालों
इज्ज़त और संस्कार की भाषा सिखा देना फिर कभी
पहले तुम स्वयं को इंसानियत का पाठ तो पढ़ा लो
हाय! ये कैसा संस्कार जो प्यार से तार-तार हो जाता है?
कैसी ये प्रतिष्ठा जिसमें हत्या से चार चाँद लग जाता है?