सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Saturday, June 14, 2014

नारी!! तुम ही....

तुम अनन्या तुम लावण्या
तुम नारी सुलभ लज्जा से आभरणा
तुम सहधर्मिनी तुम अर्पिता
तुम पूर्ण नारीश्वर गर्विता




उत्तरदायित्वों की तुम निर्वाहिनी
तुम ही पुरुष की चिरसंगिनी
तुम सौन्दर्य बोध से परिपूर्णा
तुम से ही धरित्री आभरणा




तुम ही स्वप्न की कोमल कामिनी
तुमसे सजी है दिवा औ'यामिनी
शिशु हितार्थ पूर्ण जगत हो तुम
गृहस्थ की परिपूर्णता हो तुम




तुमसे ये धरा है चञ्चला
जननी रूप मे तुम निर्मला
कभी कठोर पाषाण हृदय से रंजित
कभी करूणामयी हृदय विगलित



कभी तुम अतसि-रूपसी सौन्दर्या
कभी हुंकारित रण-वीरांगना
हे नारी!! तुम ही सृष्टिकर्ता
तुमसे ही सम्भव पुरुष-प्रकृति वार्ता




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