सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Saturday, March 23, 2013

नारी

रौंदोगे कब तक
 नारी का तुम  सम्मान ?
कब तक समझोगे
 तुम उसको एक सामान।

रखोगे तुम कब तक 
उससे एक ही नाता?
कब समझोगे उसे
 बहन बेटी या माता।

क्यों भूल जाते हो
जननी है वह तुम्हारी
और सहचरी ,
जीवन में भरती उजियारी।

नारी है शक्ति
 न समझो  उसे क्षीण तुम।
दुर्गा है, मानो मत 
उसको दींन-हीन तुम।

उसे कुचलने का 
कभी जब सोचोगे,
अपने हाथों अपनी 
जड़ तुम नोचोगे।

हाँ!अपने हाथों अपनी 

जड़ तुम नोचोगे।


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