कल
औरत
एक आवाज थी
दबा दी जाती थी
आज
औरत
एक टंकार हैं
अब लोग दबा रहे हैं
अपने कान
ताकि
टंकार सुनाई ना दे
कल की औरत की आवाज
आज की औरत की
टंकार बन चुकी हैं
© 2008-13 सर्वाधिकार सुरक्षित!
सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता
Monday, February 20, 2012
Subscribe to:
Posts (Atom)