© 2008-13 सर्वाधिकार सुरक्षित!
आज एक ख्याल ने जन्म लिया
स्त्री मुक्ति को नया अर्थ दिया
ना जाने ज़माना किन सोचो में भटक गया
और स्त्री देह तक ही सिमट गया
या फिर बराबरी के झांसे में फँस गया
मगर किसी ने ना असली अर्थ जाना
स्त्री मुक्ति के वास्तविक अर्थ को ना पहचाना
देह के स्तर पर तो कोई भेद नहीं
लैंगिग स्तर पर कैसे फर्क करें
जरूरतें दोनों की समान पायी गयीं
फिर कैसे उनमे भेद करें
दैहिक आवश्यकता ना पैमाना हुआ
ये तो सिर्फ पुरुष पर थोपने का
एक बहाना हुआ
जहाँ दोनों की जरूरत समान हो
फिर कैसे कह दें
स्त्री मुक्ति का वो ही एक कारण है
ये तो ना स्त्री मुक्ति का पर्याय हुआ
बराबरी करने वाली को स्त्री मुक्ति का दर्शन दिया
मगर ये भी ना सोच को सही दर्शाता है
"बराबरी करना" के भी अलग सन्दर्भ दीखते हैं
मगर मूलभूत अर्थ ना कोई समझता है
बदलो स्त्री मुक्ति के सन्दर्भों को
जानो उसमे छुपे उसके अर्थों को
तभी पूर्ण मुक्ति तुम पाओगी
सही अर्थ में तभी स्त्री तुम कहलाओगी
सिर्फ स्वतंत्रता या स्वच्छंदता ही
स्त्री मुक्ति का अवलंबन नहीं
ये तो मात्र स्त्री मुक्ति की एक इकाई है
जिसके भी भिन्न अर्थ हमने लगाये हैं
उठो जागो और समझो
ओ स्त्री ..........स्वाभिमानी बन कर जीना सीखो
अपनी सोच को अब तुम बदलो
स्वयं को इतना सक्षम कर लो
जो भी कहो वो इतना विश्वस्त हो
जिस पर ना कोई आक्षेप हो
और हर दृष्टि में तुम्हारे लिए आदर हो
तुम्हारी उत्कृष्ट सोच तुम्हारी पहचान का परिचायक हो
जिस दिन सोच में स्त्री में समानता आएगी
वो ही पूर्ण रूप में स्त्री मुक्ति कहलाएगी
जब स्वयं के निर्णय को सक्षम पायेगी
और बिना किसी दबाव के अपने निर्णय पर
अटल रह पायेगी
तभी उसकी मुक्ति वास्तव में मुक्ति कहलाएगी
बराबरी का अर्थ सिर्फ शारीरिक या आर्थिक ही नहीं होता
बराबरी का संपूर्ण अर्थ तो सोच से है निर्मित होता