जब भी दिखा हैं मुझे क़ोई योद्धा
नारी के हक़ की लड़ाई लड़ता
उसके आस पास दिखा हैं
एक मजमा उसको समझाता
क़ोई उसको माँ कहता हैं
क़ोई कहता हैं दीदी
क़ोई कहता हैं स्तुत्य
क़ोई कहता हैं सुंदर
और
फिर इन संबोधनों में
वो योधा कहां खो जाता हैं
पता ही नहीं चलता हैं
और
रह जाती हैं बस एक नारी
कविता , कहानी लिखती
दूसरो का ख्याल रखती
तंज और नारियों को
नारीवादी होने का देती
ना जाने कितने योद्धा
कर्मभूमि में कर्म अपने
बदल लेते हैं
और
मजमे के साथ
मजमा बन जीते हैं
© 2008-13 सर्वाधिकार सुरक्षित!
सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता
Saturday, October 1, 2011
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