सामाजिक कुरीतियाँ और नारी , उसके सम्बन्ध , उसकी मजबूरियां उसका शोषण , इससब विषयों पर कविता

Monday, March 21, 2011

मैं चुप नहीं रह पाऊँगी.

सदियों  सहन करती  आई  हूँ  तुम्हें !
सदियों वहन  भी करती जाऊँगी (कोख  में)  .

पर अगर तुम यह सोचो                
कि यह दहन- प्रक्रिया भी     
 जारी रहेगी 
यूँ ही सदियों तक. 

तो मैं चुप नहीं रह पाऊँगी.

तब सहन को भूल,
वहन को त्याग 
मैं दहन के विरुद्ध 
आवाज़ उठाऊंगी.

हाँ ! 
मैं दहन के विरुद्ध 
आवाज़ उठाऊंगी.


© 2008-13 सर्वाधिकार सुरक्षित!

11 comments:

आपका अख्तर खान अकेला said...

kyaa char orten bethi hon or voh chup rh skti hen kya avoh aek dusre se jle chide bger rah skti he . yeh to mzaaq he lekin rchna bhtrin he . akhtar khan akela kota rajsthan

vandana gupta said...

बहुत खूब उठानी भी चाहिये तभी बदलाव सम्भव है।

रचना said...

bahut hi sashkt kavita haen

and woman should speak out as often as possible because until and unless woman make noise they will not be heard

LAXMI NARAYAN LAHARE said...

SAPEREM ABHIVADAN ...
BAHUT SUNDAR RACHANA
SADAR
LAXMI NARAYAN LAHARE
KOSIR /SARANGARH

anshumala said...

जब तक हम खुद आवाज नहीं उठाएंगे तब तक हमारा कुछ भी नहीं हो सकता है पहली आवाज आत्याचार सहने वाले को ही निकालनी होती है अच्छी कविता |

neelima garg said...

bhavpuran...

Vijuy Ronjan said...

Bahut badhiya.
Dahan ke khilaf aapki aawaz ki bulandi par mujhe garv hai..Jo wahan karne aur sahan karne ki kshamta rakhte hain wo dahan ke viruuddh aawaz bulund karne ka haq bhi..
Bahut hi kam shabdon me bahut bari bat bari hi saafgoyi se..

Badhayee

hamarivani said...

मेरी लड़ाई Corruption के खिलाफ है आपके साथ के बिना अधूरी है आप सभी मेरे ब्लॉग को follow करके और follow कराके मेरी मिम्मत बढ़ाये, और मेरा साथ दे ..

aarkay said...

एक सामयिक सन्देश . आखिर सहने की भी एक सीमा होती है. दहन तो बिलकुल ही अमानवीय है. सुंदर शब्दों में एक चेतावनी है संवेदना- शून्य पुरुष समाज के लिए.
बधाई !

वर्षा said...

अच्छा विचार

डॉ. पूनम गुप्त said...

धन्यवाद !